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"क्योंकि कविता भी बदलती है / वर्तिका नन्दा" के अवतरणों में अंतर

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01:44, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बचपन में कविता लिखी
तो ऐसा उल्लास छलका
कि कागजों के बाहर आ गया।

यौवन की कविता
बिना शब्दों के भी
सब बुदबुदाती गई ।

उम्र के आखिरी पड़ाव में
मौन शून्यता के दरम्यान
मन की चपलता
कालीन के नीचे सिमट आई।

अब उस पर कविता लिखती औरत के पांव हैं
बुवाइयों भरे।