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01:44, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
बचपन में कविता लिखी
तो ऐसा उल्लास छलका
कि कागजों के बाहर आ गया।
यौवन की कविता
बिना शब्दों के भी
सब बुदबुदाती गई ।
उम्र के आखिरी पड़ाव में
मौन शून्यता के दरम्यान
मन की चपलता
कालीन के नीचे सिमट आई।
अब उस पर कविता लिखती औरत के पांव हैं
बुवाइयों भरे।