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"औरत-9 / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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या पाऊँचा सलवार का | या पाऊँचा सलवार का | ||
− | पर सब | + | पर सब घर खींचते हैं |
ज़ाहिर या नहीं ज़ाहिर-सी | ज़ाहिर या नहीं ज़ाहिर-सी | ||
− | + | लकीर | |
जिसके भीतर रहना | जिसके भीतर रहना | ||
− | एक मात्र विकल्प औरत के लिए | + | एक मात्र विकल्प |
+ | औरत के लिए | ||
पर सब घर | पर सब घर | ||
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खड़ाऊँ पहने | खड़ाऊँ पहने | ||
जिसके अग्नि-मुख | जिसके अग्नि-मुख | ||
− | बन्द करती फिरती औरत. | + | बन्द करती फिरती है |
+ | औरत. | ||
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15:55, 13 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
औरत (नौ)
सब घर
ऊँचे पहाड़ नहीं होते
जिनसे कूद कर
कोई जान दे दे
सब घर
गहरे दरिया नहीं होते
जिनमें कोई डूब जाए
सब घरों में
शब्दों और हाथों के
भयावह कारनामों की
लम्बी फ़ेहरिस्त नहीं होती
सब घरों की रसोई में नहीं लपकती आग
थाम लेने को पल्लू साड़ी का
किनारा चूनर का
या पाऊँचा सलवार का
पर सब घर खींचते हैं
ज़ाहिर या नहीं ज़ाहिर-सी
लकीर
जिसके भीतर रहना
एक मात्र विकल्प
औरत के लिए
पर सब घर
पल-पल जलती भट्टी
डेढ़ इंच लकड़ी की
खड़ाऊँ पहने
जिसके अग्नि-मुख
बन्द करती फिरती है
औरत.