भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (निरंजन धन तुम्हरा दरबार/ कबीर का नाम बदलकर निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर कर दिया गया है)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कबीर
 
|रचनाकार=कबीर
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
 +
जहाँ न तनिक न्याय विचार ।।
  
 
+
रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।
<poem>
+
धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
+
वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।
जहां न तनिक न्याय विचार ।।<br />
+
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार  ।।
रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।<br />
+
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।
धूर धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।<br />
+
अज्ञानी को परम‌ ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।
वेश्या आेढे खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।<br />
+
साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार  ।।<br />
+
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।<br />
+
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
अज्ञानी को परं ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।<br />
+
सांच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।<br />
+
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।<br />
+
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
+
 
</poem>
 
</poem>

21:51, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण

निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
जहाँ न तनिक न्याय विचार ।।

रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।
धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।
वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।।
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।
अज्ञानी को परम‌ ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।
साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।