भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर }} निरंजन धन तुम्हरो दरबार । जहां न तनिक न्य…)
 
छो ("निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कबीर
 
|रचनाकार=कबीर
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
 
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
जहां न तनिक न्याय विचार ।।
+
जहाँ न तनिक न्याय विचार ।।
 +
 
 
रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।
 
रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।
धूर धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।
+
धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।
वेश्या आेढे खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।
+
वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार  ।।
+
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार  ।।
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।
+
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।
अज्ञानी को परं ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।
+
अज्ञानी को परम‌ ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।
सांच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।
+
साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।
 
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।
 
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।
 
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
 
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
 +
</poem>

21:51, 13 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।
जहाँ न तनिक न्याय विचार ।।

रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार ।
धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।।
वेश्या ओढे़ खासा मखमल, गल मोतिन का हार ।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।।
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार ।
अज्ञानी को परम‌ ब्रहम ज्ञानी को मूढ़ गंवार ।।
साँच कहे जग मारन धावे, झूठन को इतबार ।
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।