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<poem>
:स्मृति के मधुर वसंत पधारो!
:::निःश्वासों की पवन प्रचारो
::::स्मृति के मधुर वसंत पधारो!
 
::::तरु दिलदार, साधना डाली
:::लिपटी नेह-लता हरियाली
:::चुने विश्व-परिवार उचारो
::::स्मृति के मधुर वसंत पधारो!
 
::::आते हो? वह छबि दरसा दो
:::रूठा हृदय-चोर हरषा दो
:::ज्ञान-जरा-जर्जरता टारो
::::स्मृति के मधुर वसंत पधारो!
 
::::भीजे अम्बर वाले ख्याली
:::चढ़ तरुवर की डाली डाली
:::भू-मंडल पर स्वर्ग उतारो
::::स्मृति के मधुर वसंत पधारो!
 
::::नहीं, चलो हम हों दो कलियाँ
:::मुसक-सिसक होवे रंगरलियाँ
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