भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=समर्पण / माखनलाल चतुर्वेदी]] }}~*~*~*~*~*~*~*~ {{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री।री,
दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री।
 :गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में, :निकल पडें़गे पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में, :ऋतु में और ऋचा में किसके कसके रिमझिम-रिमझिम बरसन,  झांकी ऐसी सजी झूलना भी जी भूलै री।री,
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
   :रूठन में पुतली पर जी को की जूठन डोलै री, :अनमोली साधों में मुरली मोहन बोलै री, करताल :करतालन में बंध्यों बँध्यो न रसिया, वह तालन में दीख्योंदीख्यो,  
भागूँ कहाँ कलेजौ कालिंदी मैं हूलै री।
 
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
   :नभ के नखत उतर बूँदों में बागों फूल उठे री, :हरी-हरी डालन राधा माधव से झूल उठे री,  :आज प्राण प्रणव ने प्रणय भीख से कहा कि नैन उठा तो, साजन दीख न जाय संभालो जरा दुकूलै री। री,दिन तो दिन, कलमंुही कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री, 
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits