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'''रचनाकाल : 1993'''
  
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
 
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02:39, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बाइबिल नहीं पढ़ी मैंने
नहीं, कुरान नहीं
गीता नहीं पढ़ी मैंने

पढ़ा तुमको
खुद को पढ़ा मैंने

चढ़ा एसे पहाड़ पर
जिस पर शायद ही चढ़ा हो कोई
ऊँचाई ऐसी
कि अश-अश कर उठे सितारे

नीचे जमीन को दूर-दूर तक पता नहीं
यहाँ एक आग जल रही है
निकल रहे हैं लपटों से हमी-हम बार-बार
अपनी पुकारों के प्रत्युतर में

बाइबिल नहीं पढ़ी मैनें

रचनाकाल : 1993

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।