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03:10, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
बादलों
धैर्य मत खोना
अभी मेरे होंठों में
नमी बरकरार है
उमड़ते-घुमड़ते
गरज़ते और दौड़ते रहना
आँखों में झलक रहा है
पानी अभी
खाया हुआ नमक
घुल रहा है रग-रग में
संचरित हो रहा है ख़ून
आँखें
पठारी शक्ल अख़्तियार कर लें
सूख जाएँ होंठ
तब बरस जाना
कि ज़िन्दगी भर घुलता रहे
मेरी ही रगों में
खाया हुआ नमक