भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हर ज़ाम छलकता है तेरे नाम / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}} ढ़लती शाम,मचलता चाँद,<br> छलकत…)
(कोई अंतर नहीं)

01:52, 19 दिसम्बर 2009 का अवतरण


ढ़लती शाम,मचलता चाँद,
छलकता जम, तीनों ही तेरे नाम।

धीरे-धीरे चाँदनी का उतरना,
रात का बहकना,दिल का न संभलना,
हर सांस लाती है तेरा पैगाम
तीनों ही तेरे नाम........

हर शाम मैं महफ़िल सजाता हूँ,
मधुशाला से मधु चुन-चुन मंगाता हूँ,
हर जाम छलकता है तेरे नाम ।
तीनों ही तेरे नाम........

जाम ही जाम पीता हूं,गम में भी जीता हूँ,
ये मुकद्दर सब कुछ दिया तूने मुझे,
न कर सका इक हमसफ़र का इन्तज़ाम।
तीनों ही तेरे नाम.........

अब तो मेरा जीवन ही मयखाना हो गया है,
इस मयखाने का साकी कहीं खो गया है,
जीने की चाह जगाता है तेरा नाम।
तीनों ही तेरे नाम...........