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"पत्थर-से गम सहते हैं / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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कोमल बचपन पत्थर से गम सहते हैं।
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रूखे अधर, आंख में पानी,
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नहीं पसीजे कोई इनके दुख से
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चीख-चीख यह कहते हैं ......
  
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इनके लिए दिन-रात परिश्रम,
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खा पीकर जब करते सब आराम,
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कैसी आज़ादी जहाँ सुकुमारता बंधक है?
रूखे अधर, आंख में पानी,<br>
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बडे-बडे कानून हैं पर इनका कोई न रक्षक है?
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चीख-चीख यह कहते हैं .......<br><br>
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उनके अन्तस के चीत्कार को,
इनके लिए दिन-रात परिश्रम,<br>
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कौन सुनेगा उनकी पुकार को?
खा पीकर जब करते सब आराम,<br>
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पग-पग पर ठोकर खाते,
काम तब भी ये करते हैं.......<br><br>
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फिर भी प्रतिकार न करते हैं.....
कैसी आज़ादी जहाँ सुकुमारता बंधक है?<br>
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बडे-बडे कानून हैं पर इनका कोई न रक्षक है?<br>
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जीने का हक इन्हें भी दे दो,
नारे लगाते बड़े-बड़े फिर भी,<br>
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अधिकार,प्यार इन्हें भी दे दो,
इनका दुख न कोई हरते हैं.....<br><br>
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इनका जीवन बदलेंगे हम,
उनके अन्तस के चीत्कार को,<br>
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संकल्प आज ये करते हैं.....
कौन सुनेगा उनकी पुकार को?<br>
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फिर भी प्रतिकार न करते हैं.....<br><br>
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जीने का हक इन्हें भी दे दो,<br>
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अधिकार,प्यार इन्हें भी दे दो,<br>
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इनका जीवन बदलेंगे हम,<br>
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संकल्प आज ये करते हैं......<br><br>
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07:27, 19 दिसम्बर 2009 का अवतरण


कोमल बचपन पत्थर से गम सहते हैं।
रूखे अधर, आंख में पानी,
बचपन जाने से पहले ही बीती जाय जवानी,
नहीं पसीजे कोई इनके दुख से
चीख-चीख यह कहते हैं ......

भोजन, कपडा नहीं बराबर,
इनके लिए दिन-रात परिश्रम,
खा पीकर जब करते सब आराम,
काम तब भी ये करते हैं.......

कैसी आज़ादी जहाँ सुकुमारता बंधक है?
बडे-बडे कानून हैं पर इनका कोई न रक्षक है?
नारे लगाते बड़े-बड़े फिर भी,
इनका दुख न कोई हरते हैं.....

उनके अन्तस के चीत्कार को,
कौन सुनेगा उनकी पुकार को?
पग-पग पर ठोकर खाते,
फिर भी प्रतिकार न करते हैं.....

जीने का हक इन्हें भी दे दो,
अधिकार,प्यार इन्हें भी दे दो,
इनका जीवन बदलेंगे हम,
संकल्प आज ये करते हैं.....