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"दीप / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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धूसर सन्ध्या चली आ रही थी अधिकार जमाने को, | धूसर सन्ध्या चली आ रही थी अधिकार जमाने को, | ||
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अन्धकार अवसाद कालिमा लिये रहा बरसाने को। | अन्धकार अवसाद कालिमा लिये रहा बरसाने को। | ||
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गिरि संकट के जीवन-सोता मन मारे चुप बहता था, | गिरि संकट के जीवन-सोता मन मारे चुप बहता था, | ||
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कल कल नाद नही था उसमें मन की बात न कहता था। | कल कल नाद नही था उसमें मन की बात न कहता था। | ||
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इसे जाह्नवी-सी आदर दे किसने भेंट चढाया हैं, | इसे जाह्नवी-सी आदर दे किसने भेंट चढाया हैं, | ||
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अंचल से सस्नेह बचाकर छोटा दीप जलाया हैं। | अंचल से सस्नेह बचाकर छोटा दीप जलाया हैं। | ||
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जला करेगा वक्षस्थल पर वहा करेगा लहरी में, | जला करेगा वक्षस्थल पर वहा करेगा लहरी में, | ||
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नाचेगी अनुरक्त वीचियाँ रंचित प्रभा सुनहरी में, | नाचेगी अनुरक्त वीचियाँ रंचित प्रभा सुनहरी में, | ||
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तट तरु की छाया फिर उसका पैर चूमने जावेगी, | तट तरु की छाया फिर उसका पैर चूमने जावेगी, | ||
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सुप्त खगों की नीरव स्मृति क्या उसको गान सुनावेगी। | सुप्त खगों की नीरव स्मृति क्या उसको गान सुनावेगी। | ||
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देख नग्न सौन्दर्य प्रकृति का निर्जन मे अनुरागी हो, | देख नग्न सौन्दर्य प्रकृति का निर्जन मे अनुरागी हो, | ||
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निज प्रकाश डालेगा जिसमें अखिल विश्व समभागी हो। | निज प्रकाश डालेगा जिसमें अखिल विश्व समभागी हो। | ||
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किसी माधुरी स्मित-सी होकर यह संकेत बताने को, | किसी माधुरी स्मित-सी होकर यह संकेत बताने को, | ||
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जला करेगा दीप, चलेगा यह सोता बह जाते को॥ | जला करेगा दीप, चलेगा यह सोता बह जाते को॥ | ||
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00:23, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
धूसर सन्ध्या चली आ रही थी अधिकार जमाने को,
अन्धकार अवसाद कालिमा लिये रहा बरसाने को।
गिरि संकट के जीवन-सोता मन मारे चुप बहता था,
कल कल नाद नही था उसमें मन की बात न कहता था।
इसे जाह्नवी-सी आदर दे किसने भेंट चढाया हैं,
अंचल से सस्नेह बचाकर छोटा दीप जलाया हैं।
जला करेगा वक्षस्थल पर वहा करेगा लहरी में,
नाचेगी अनुरक्त वीचियाँ रंचित प्रभा सुनहरी में,
तट तरु की छाया फिर उसका पैर चूमने जावेगी,
सुप्त खगों की नीरव स्मृति क्या उसको गान सुनावेगी।
देख नग्न सौन्दर्य प्रकृति का निर्जन मे अनुरागी हो,
निज प्रकाश डालेगा जिसमें अखिल विश्व समभागी हो।
किसी माधुरी स्मित-सी होकर यह संकेत बताने को,
जला करेगा दीप, चलेगा यह सोता बह जाते को॥