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"रत्न / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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मिल गया था पथ में वह रत्न। | मिल गया था पथ में वह रत्न। | ||
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किन्तु मैने फिर किया न यत्न॥ | किन्तु मैने फिर किया न यत्न॥ | ||
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पहल न उसमे था बना, | पहल न उसमे था बना, | ||
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चढ़ा न रहा खराद। | चढ़ा न रहा खराद। | ||
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स्वाभाविकता मे छिपा, | स्वाभाविकता मे छिपा, | ||
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न था कलंक विषाद॥ | न था कलंक विषाद॥ | ||
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चमक थी, न थी तड़प की झोंक। | चमक थी, न थी तड़प की झोंक। | ||
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रहा केवल मधु स्निग्धालोक॥ | रहा केवल मधु स्निग्धालोक॥ | ||
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मूल्य था मुझे नही मालूम। | मूल्य था मुझे नही मालूम। | ||
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किन्तु मन लेता उसको चूम॥ | किन्तु मन लेता उसको चूम॥ | ||
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उसे दिखाने के लिए, | उसे दिखाने के लिए, | ||
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उठता हृदय कचोट। | उठता हृदय कचोट। | ||
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और रूके रहते सभय, | और रूके रहते सभय, | ||
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करे न कोई खोट॥ | करे न कोई खोट॥ | ||
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बिना समझे ही रख दे मूल्य। | बिना समझे ही रख दे मूल्य। | ||
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न था जिस मणि के कोई तुल्य॥ | न था जिस मणि के कोई तुल्य॥ | ||
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जान कर के भी उसे अमोल। | जान कर के भी उसे अमोल। | ||
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बढ़ा कौतूहल का फिर तोल॥ | बढ़ा कौतूहल का फिर तोल॥ | ||
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मन आग्रह करने लगा, | मन आग्रह करने लगा, | ||
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लगा पूछने दाम। | लगा पूछने दाम। | ||
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चला आँकने के लिए, | चला आँकने के लिए, | ||
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वह लोभी बे काम॥ | वह लोभी बे काम॥ | ||
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पहन कर किया नहीं व्यवहार। | पहन कर किया नहीं व्यवहार। | ||
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बनाया नही गले का हार॥ | बनाया नही गले का हार॥ | ||
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00:28, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
मिल गया था पथ में वह रत्न।
किन्तु मैने फिर किया न यत्न॥
पहल न उसमे था बना,
चढ़ा न रहा खराद।
स्वाभाविकता मे छिपा,
न था कलंक विषाद॥
चमक थी, न थी तड़प की झोंक।
रहा केवल मधु स्निग्धालोक॥
मूल्य था मुझे नही मालूम।
किन्तु मन लेता उसको चूम॥
उसे दिखाने के लिए,
उठता हृदय कचोट।
और रूके रहते सभय,
करे न कोई खोट॥
बिना समझे ही रख दे मूल्य।
न था जिस मणि के कोई तुल्य॥
जान कर के भी उसे अमोल।
बढ़ा कौतूहल का फिर तोल॥
मन आग्रह करने लगा,
लगा पूछने दाम।
चला आँकने के लिए,
वह लोभी बे काम॥
पहन कर किया नहीं व्यवहार।
बनाया नही गले का हार॥