भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अतिथि / जयशंकर प्रसाद

3 bytes removed, 18:59, 19 दिसम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}'''मुखपृष्ठ: [[झरना / जयशंकर प्रसाद]]''' <poem>
दूर हटे रहते थे हम तो आप ही
 
क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते-
 
हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था
 
स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया
 
दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ-
 
देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहते?
 
भरा हुआ था नवल मेघ जल-बिन्दु से,
 
ऐसा पवन चलाया, क्यों बरसा दिया?
 
शून्य हृदय हो गया जलद, सब प्रेम-जल-
 
देकर तुन्हें। न तुम कुछ भी पुलकित हुए।
 
मरु-धरणी सम तुमने सब शोषित किया।
 
क्या आशा थी आशा कानन को यही?
 
चंचल हृदय तुम्हारा केवल खेल था,
 
मेरी जीवन मरण समस्या हो गई।
 
डरते थे इसको, होते थे संकुचित
 
कभी न प्रकटित तुम स्वभाव कर दो कभी।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits