भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अतिथि / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
 
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
 +
|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
'''मुखपृष्ठ: [[झरना / जयशंकर प्रसाद]]'''
+
<poem>
 
+
 
+
 
दूर हटे रहते थे हम तो आप ही
 
दूर हटे रहते थे हम तो आप ही
 
 
क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते-
 
क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते-
 
 
हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था
 
हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था
 
 
स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया
 
स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया
 
  
 
दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ-
 
दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ-
 
 
देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहते?
 
देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहते?
 
 
भरा हुआ था नवल मेघ जल-बिन्दु से,
 
भरा हुआ था नवल मेघ जल-बिन्दु से,
 
 
ऐसा पवन चलाया, क्यों बरसा दिया?
 
ऐसा पवन चलाया, क्यों बरसा दिया?
 
  
 
शून्य हृदय हो गया जलद, सब प्रेम-जल-
 
शून्य हृदय हो गया जलद, सब प्रेम-जल-
 
 
देकर तुन्हें। न तुम कुछ भी पुलकित हुए।
 
देकर तुन्हें। न तुम कुछ भी पुलकित हुए।
 
 
मरु-धरणी सम तुमने सब शोषित किया।
 
मरु-धरणी सम तुमने सब शोषित किया।
 
 
क्या आशा थी आशा कानन को यही?
 
क्या आशा थी आशा कानन को यही?
 
  
 
चंचल हृदय तुम्हारा केवल खेल था,
 
चंचल हृदय तुम्हारा केवल खेल था,
 
 
मेरी जीवन मरण समस्या हो गई।
 
मेरी जीवन मरण समस्या हो गई।
 
 
डरते थे इसको, होते थे संकुचित
 
डरते थे इसको, होते थे संकुचित
 
 
कभी न प्रकटित तुम स्वभाव कर दो कभी।
 
कभी न प्रकटित तुम स्वभाव कर दो कभी।
 +
</poem>

00:29, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

दूर हटे रहते थे हम तो आप ही
क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते-
हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था
स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया

दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ-
देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहते?
भरा हुआ था नवल मेघ जल-बिन्दु से,
ऐसा पवन चलाया, क्यों बरसा दिया?

शून्य हृदय हो गया जलद, सब प्रेम-जल-
देकर तुन्हें। न तुम कुछ भी पुलकित हुए।
मरु-धरणी सम तुमने सब शोषित किया।
क्या आशा थी आशा कानन को यही?

चंचल हृदय तुम्हारा केवल खेल था,
मेरी जीवन मरण समस्या हो गई।
डरते थे इसको, होते थे संकुचित
कभी न प्रकटित तुम स्वभाव कर दो कभी।