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"विरह / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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प्रियजन दृग-सीमा से जभी दूर होते | प्रियजन दृग-सीमा से जभी दूर होते | ||
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ये नयन-वियोगी रक्त के अश्रु रोते | ये नयन-वियोगी रक्त के अश्रु रोते | ||
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सहचर-सुखक्रीड़ा नेत्र के सामने भी | सहचर-सुखक्रीड़ा नेत्र के सामने भी | ||
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प्रति क्षण लगती है नाचने चित्त में भी | प्रति क्षण लगती है नाचने चित्त में भी | ||
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प्रिय, पदरज मेघाच्छन्न जो हो रहा हो | प्रिय, पदरज मेघाच्छन्न जो हो रहा हो | ||
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यह हृदय तुम्हारा विश्व को खो रहा हो | यह हृदय तुम्हारा विश्व को खो रहा हो | ||
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स्मृति-सुख चपला की क्या छटा देखते हो | स्मृति-सुख चपला की क्या छटा देखते हो | ||
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अविरल जलधारा अश्रु में भींगते हो | अविरल जलधारा अश्रु में भींगते हो | ||
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हृदय द्रवित होता ध्यान में भूत ही के | हृदय द्रवित होता ध्यान में भूत ही के | ||
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सब सबल हुए से दीखते भाव जी के | सब सबल हुए से दीखते भाव जी के | ||
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प्रति क्षण मिलते है जो अतीताब्धि ही में | प्रति क्षण मिलते है जो अतीताब्धि ही में | ||
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गत निधि फिर आती पूर्ण की लब्धि ही में | गत निधि फिर आती पूर्ण की लब्धि ही में | ||
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यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो | यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो | ||
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यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो | यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो | ||
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हम अलग हुए है पूर्ण से व्यक्त होके | हम अलग हुए है पूर्ण से व्यक्त होके | ||
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वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके | वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके | ||
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01:09, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण
प्रियजन दृग-सीमा से जभी दूर होते
ये नयन-वियोगी रक्त के अश्रु रोते
सहचर-सुखक्रीड़ा नेत्र के सामने भी
प्रति क्षण लगती है नाचने चित्त में भी
प्रिय, पदरज मेघाच्छन्न जो हो रहा हो
यह हृदय तुम्हारा विश्व को खो रहा हो
स्मृति-सुख चपला की क्या छटा देखते हो
अविरल जलधारा अश्रु में भींगते हो
हृदय द्रवित होता ध्यान में भूत ही के
सब सबल हुए से दीखते भाव जी के
प्रति क्षण मिलते है जो अतीताब्धि ही में
गत निधि फिर आती पूर्ण की लब्धि ही में
यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो
यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो
हम अलग हुए है पूर्ण से व्यक्त होके
वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके