{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}कानन-कुसुम -<poem>
क्या हमने कह दिया, हुए क्यों रुष्ट हमें बतलाओ भी
ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक न जाओ, आओ भी
मिथ्या ही हो, किन्तु प्रेम का प्रत्याख्यान नहीं करते
धोखा क्या है, समझ चुके थे; फिर भी किया, नही डरते
</poem>