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पल्लव (कविता) / सुमित्रानंदन पंत

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:::विश्व पर विस्मित-चितवन डाल,
:::::हिलाते अधर-प्रवाल!
दिवस का इनमें रजत-प्रसार
::उषा का स्वर्ण-सुहाग;
निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
::साँझ का निःस्वन-राग;
:::नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,
:::तरुणतम-सुन्दरता की आग!
कल्पना के ये विह्वल-बाल,
आँख के अश्रु, हृदय के हास;
वेदना के प्रदीप की ज्वाल,
प्रणय के ये मधुमास;
:::सुछबि के छायाबन की साँस
:::भर गई इनमें हाव, हुलास!
आज पल्लवित हुई है डाल,
झुकेगा कल गुंजित-मधुमास;
मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल,
सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!
'''रचनाकाल: जनवरी १९१८नवम्बर’१९२४'''
</poem>
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