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"पल्लव (कविता) / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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कल्पना के ये विह्वल-बाल,
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आँख के अश्रु, हृदय के हास;
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वेदना के प्रदीप की ज्वाल,
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प्रणय के ये मधुमास;
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:::सुछबि के छायाबन की साँस
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:::भर गई इनमें हाव, हुलास!
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आज पल्लवित हुई है डाल,
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झुकेगा कल गुंजित-मधुमास;
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मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल,
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सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!
  
'''रचनाकाल: जनवरी १९१८'''
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'''रचनाकाल: नवम्बर’१९२४'''
 
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22:24, 22 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

अरे! ये पल्लव-बाल!
सजा सुमनों के सौरभ-हार
गूँथते वे उपहार;
अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल,
नहीं छूटो तरु-डाल;
विश्व पर विस्मित-चितवन डाल,
हिलाते अधर-प्रवाल!
दिवस का इनमें रजत-प्रसार
उषा का स्वर्ण-सुहाग;
निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
साँझ का निःस्वन-राग;
नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,
तरुणतम-सुन्दरता की आग!
कल्पना के ये विह्वल-बाल,
आँख के अश्रु, हृदय के हास;
वेदना के प्रदीप की ज्वाल,
प्रणय के ये मधुमास;
सुछबि के छायाबन की साँस
भर गई इनमें हाव, हुलास!
आज पल्लवित हुई है डाल,
झुकेगा कल गुंजित-मधुमास;
मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल,
सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!

रचनाकाल: नवम्बर’१९२४