भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
::कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात? | ::कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात? | ||
::दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात, | ::दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात, | ||
− | ::अपरिचित | + | ::अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात! |
::(२) | ::(२) |
22:35, 22 दिसम्बर 2009 का अवतरण
(१)
आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
भूतियों का दिगंत-छबि-जाल,
ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?
स्वर्ग की सुषमा जब साभार
धरा पर करती थी अभिसार!
प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार,
(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
गूंज उठते थे बारंबार,
सृष्टि के प्रथमोद्गार!
नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,
कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात!
(२)
अहे निष्ठुर परिवर्तन!
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन!
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!
रचनाकाल: १९२४