"बंगाल का काल / हरिवंशराय बच्चन / पृष्ठ १" के अवतरणों में अंतर
छो (बंगाल का काल / हरिवंशराय बच्चन / पृष्ठ-१ का नाम बदलकर बंगाल का काल / हरिवंशराय बच्चन / पृष्ठ १ कर दिया ) |
|||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | पड़ गया | + | पड़ गया बंगाले में काल, |
भरी कंगालों से धरती, | भरी कंगालों से धरती, | ||
भरी कंकालों से धरती! | भरी कंकालों से धरती! | ||
− | + | दीनता ले असंख्य अवतार, | |
+ | पेट खला, | ||
+ | हाथ पसार, | ||
+ | पाँच उँगलियाँ बाँध, | ||
+ | मुँह दिखला, | ||
+ | भीतर घुसी हुई आँखों से, | ||
+ | आँसू ढार, | ||
+ | मानव होने का सारा सम्मान बिसार, | ||
+ | घूमती गाँव-गाँव, | ||
+ | घूमती नगर-नगर, | ||
+ | बाज़ारों-हाटों में, दर-दर, द्वार-द्वार! | ||
+ | |||
+ | अरे, यह भूख हुई साकार, | ||
+ | दीर्घाकार! | ||
+ | तृप्त कर सकता इसको कौन? | ||
+ | पेट भर सकता इसका कौन? | ||
+ | भूख ही होती, लो, भोजन! | ||
+ | मृत्यु अपना मुख शत-योजन | ||
+ | खोलती, | ||
+ | खाती और चबाती, | ||
+ | मोद मनाती, | ||
+ | मग्न हो मृत्यु नृत्य करती! | ||
+ | नग्न हो मृत्यु नृत्य करती! | ||
+ | देती परम तुष्टि की ताल, | ||
+ | पड़ गया बंगाले में काल, | ||
+ | भरी कंगालों से धरती, | ||
+ | भरी कंकालों से धरती! | ||
+ | |||
+ | क्या कहा? | ||
कहाँ पड़ गया काल, | कहाँ पड़ गया काल, | ||
कहाँ कंगाल, | कहाँ कंगाल, | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 60: | ||
सिंचित करते वसुंधरा का | सिंचित करते वसुंधरा का | ||
आँगन उर्वर। | आँगन उर्वर। | ||
+ | |||
जिसमें उगते-बढ़ते तरुवर, | जिसमें उगते-बढ़ते तरुवर, | ||
लदे दलों से, | लदे दलों से, | ||
फँदे फलों से, | फँदे फलों से, | ||
− | सजे कली-कली कुसुमों से | + | सजे कली-कली कुसुमों से सुंदर। |
− | + | वही बंगाल-- | |
− | देख जिसे पुलकित नेत्रों से | + | देख जिसे पुलकित नेत्रों से, |
भरे कंठ से, | भरे कंठ से, | ||
− | + | गद्गद स्वर से, | |
− | कवि ने | + | कवि ने गाया राष्ट्र गान वह- |
− | + | वन्दे मातरम्, | |
− | + | सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, | |
− | + | शस्य श्यामलाम्, मातरम्...। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | वन्दे मातरम्-- | |
− | + | जो नगपति के उच्च शिखर से | |
− | + | रासकुमारी के पदनख तक, | |
− | + | गिरि-गह्वर में, | |
− | + | वन प्रांतर में, | |
+ | मरुस्थलों में, मैदानों में, | ||
+ | खेतों में औ’ खलिहानों में, | ||
+ | गाँव-गाँव में, | ||
+ | नगर-नगर में, | ||
+ | डगर-डगर में, | ||
+ | बाहर-घर में, | ||
+ | स्वतंत्रता का महामंत्र बन, | ||
+ | कंठ-कंठ से हुआ निनादित, | ||
+ | कंठ-कंठ से हुआ प्रतिध्वनित। | ||
− | + | जपकर जिसको आजादी के दीवानों ने | |
− | + | कितने ही | |
− | + | दी मिला जवानी | |
− | + | मिट्टी में काले पानी में। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | <poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | < | + |
17:47, 23 दिसम्बर 2009 का अवतरण
पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |
पड़ गया बंगाले में काल,
भरी कंगालों से धरती,
भरी कंकालों से धरती!
दीनता ले असंख्य अवतार,
पेट खला,
हाथ पसार,
पाँच उँगलियाँ बाँध,
मुँह दिखला,
भीतर घुसी हुई आँखों से,
आँसू ढार,
मानव होने का सारा सम्मान बिसार,
घूमती गाँव-गाँव,
घूमती नगर-नगर,
बाज़ारों-हाटों में, दर-दर, द्वार-द्वार!
अरे, यह भूख हुई साकार,
दीर्घाकार!
तृप्त कर सकता इसको कौन?
पेट भर सकता इसका कौन?
भूख ही होती, लो, भोजन!
मृत्यु अपना मुख शत-योजन
खोलती,
खाती और चबाती,
मोद मनाती,
मग्न हो मृत्यु नृत्य करती!
नग्न हो मृत्यु नृत्य करती!
देती परम तुष्टि की ताल,
पड़ गया बंगाले में काल,
भरी कंगालों से धरती,
भरी कंकालों से धरती!
क्या कहा?
कहाँ पड़ गया काल,
कहाँ कंगाल,
कहाँ कंकाल,
क्या कहा, कालत्रस्त बंगाल!
वही बंगाल-
जिस पर सजल घनों की
छाया में लह-लह लहराते
खेत धान के दूर-दूर तक,
जहाँ कहीं भी गति नयनों की।
जिस पर फैले नदी-सरोवर,
नद-नाले वर,
निर्मल निर्झर
सिंचित करते वसुंधरा का
आँगन उर्वर।
जिसमें उगते-बढ़ते तरुवर,
लदे दलों से,
फँदे फलों से,
सजे कली-कली कुसुमों से सुंदर।
वही बंगाल--
देख जिसे पुलकित नेत्रों से,
भरे कंठ से,
गद्गद स्वर से,
कवि ने गाया राष्ट्र गान वह-
वन्दे मातरम्,
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्य श्यामलाम्, मातरम्...।
वन्दे मातरम्--
जो नगपति के उच्च शिखर से
रासकुमारी के पदनख तक,
गिरि-गह्वर में,
वन प्रांतर में,
मरुस्थलों में, मैदानों में,
खेतों में औ’ खलिहानों में,
गाँव-गाँव में,
नगर-नगर में,
डगर-डगर में,
बाहर-घर में,
स्वतंत्रता का महामंत्र बन,
कंठ-कंठ से हुआ निनादित,
कंठ-कंठ से हुआ प्रतिध्वनित।
जपकर जिसको आजादी के दीवानों ने
कितने ही
दी मिला जवानी
मिट्टी में काले पानी में।