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पैठयो रव गावत स्त्रवनि, मुख तैं निसरत आहि॥ | पैठयो रव गावत स्त्रवनि, मुख तैं निसरत आहि॥ | ||
15:50, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
ताननि की ताननि मही, परयौजुमन धुकि धाहिं।
पैठयो रव गावत स्त्रवनि, मुख तैं निसरत आहि॥
मुख तैं निसरत आहि! साहि नहिं सकत चोट चित।
ज्ञान हरद तैं दरद मिटत नहिं, बिबस लुटत छित॥
रीझ रोग रगमग्यौ पग्यौ, नहिं छूटत प्राननि।
चित चरननि क्यौं छुटैं, प्रेम वारेन की ताननि॥