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"एक अहसास / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
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और जब नये फूल खिलते हैं तो, | और जब नये फूल खिलते हैं तो, | ||
उसको "वसन्त" कहते हैं, | उसको "वसन्त" कहते हैं, | ||
− | दूर मिलने का | + | दूर मिलने का आभास लिए |
जब धरती गगन मिलते हैं, | जब धरती गगन मिलते हैं, | ||
तो उसे "क्षितिज" कहते हैं | तो उसे "क्षितिज" कहते हैं | ||
पर, | पर, | ||
− | तेरा मेरा मिलना क्या है | + | तेरा मेरा मिलना क्या है...? |
+ | |||
इसे न तो "वसन्त", | इसे न तो "वसन्त", | ||
− | न | + | न "पतझड़", |
और न "क्षितिज" कहते हैं! | और न "क्षितिज" कहते हैं! | ||
− | यह तो सिर्फ़ एक अहसास है, | + | यह तो सिर्फ़ |
+ | एक अहसास है, | ||
अहसास, | अहसास, | ||
कुछ नही, एक पगडंडी है, | कुछ नही, एक पगडंडी है, | ||
तुमसे मुझ तक आती हुई, | तुमसे मुझ तक आती हुई, | ||
+ | |||
मैं और तुम, | मैं और तुम, | ||
तुम और मैं, | तुम और मैं, | ||
− | जिसके आगे शून्य है सब | + | जिसके आगे शून्य है सब... |
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20:40, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
पेड़ों से जब पत्ते गिरते हैं तो,
उसको "पतझड़" कहते हैं,
और जब नये फूल खिलते हैं तो,
उसको "वसन्त" कहते हैं,
दूर मिलने का आभास लिए
जब धरती गगन मिलते हैं,
तो उसे "क्षितिज" कहते हैं
पर,
तेरा मेरा मिलना क्या है...?
इसे न तो "वसन्त",
न "पतझड़",
और न "क्षितिज" कहते हैं!
यह तो सिर्फ़
एक अहसास है,
अहसास,
कुछ नही, एक पगडंडी है,
तुमसे मुझ तक आती हुई,
मैं और तुम,
तुम और मैं,
जिसके आगे शून्य है सब...