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"तुम्हे याद हो के ना याद हो / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें <br>
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वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े-मज़े की हिकायतें <br>
 
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो  
 
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वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर <br>
 
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वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का <br>
 
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वो नहीइं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो  
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जिसे आप गिन्ते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा <br>
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जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा <br>
 
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
 
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो

13:04, 12 अगस्त 2008 का अवतरण

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो


वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े-मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो


कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो


सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो


कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो


हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो


वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो कि न याद हो


कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो


वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं-नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो


जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो