भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन राणा
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं नदी / मोहन राणा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
तुम अपवाद हो इसलिए
अपने आप से करता मेरा विवाद हो,
सोचता मैं कोई शब्द जो फुसलादे
मेरे साथ चलती छाया को
कुछ देर कि मैं छिप जाऊँ किसी मोड़ पे,
देखूँ होकर अदृश्य
अपने ही जीवन के विवाद को
रिक्त स्थानों के संवाद में.
'''रचनाकाल: 26.11.2005</poem>