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"सर्दियाँ / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

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जमे हुए पाले में
 
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गलते पतझर को फिर चस्पा दूंगा पेड़ों पर
 
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हवा की सर्द सीत्कार कम हो जाएगी,
 
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जैसे अपने को आश्वस्त करता
 
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पास ही है वसंत
 
पास ही है वसंत
 
 
इस प्रतीक्षा में
 
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पिछले कई दिनों से कुछ जमा होता रहा
 
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ले चुका कोई आकार
 
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कोई कारण
 
कोई कारण
 
 
कोई प्रश्न
 
कोई प्रश्न
 
 
मेरे कंधे पर
 
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मेरे हाथों में
 
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जेब में
 
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कहीं मेरे भीतर
 
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कुछ जिसे छू सकता हूँ
 
कुछ जिसे छू सकता हूँ
 
 
यह वज़न अब हर  उसांस में धकेलता मुझे नीचे
 
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किसी समतल धरातल की ओर,
 
किसी समतल धरातल की ओर,
  
 
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'''रचनाकाल: 4.2.2006
4.2.2006
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17:45, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

जमे हुए पाले में
गलते पतझर को फिर चस्पा दूंगा पेड़ों पर
हवा की सर्द सीत्कार कम हो जाएगी,
जैसे अपने को आश्वस्त करता
पास ही है वसंत
इस प्रतीक्षा में
पिछले कई दिनों से कुछ जमा होता रहा
ले चुका कोई आकार
कोई कारण
कोई प्रश्न
मेरे कंधे पर
मेरे हाथों में
जेब में
कहीं मेरे भीतर
कुछ जिसे छू सकता हूँ
यह वज़न अब हर उसांस में धकेलता मुझे नीचे
किसी समतल धरातल की ओर,

रचनाकाल: 4.2.2006