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ढलती एक शाम / मोहन राणा
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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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कितने आयाम कि चैन नहीं जिसमें
ली यह साँस करने यह सवाल
कि नहीं करूंगा फिर वही सवाल,
मैं चिड़िया हूँ या पतंग
या दोनों ही हूँ एक साथ
उस आयाम में
ढलती एक शाम
'''रचनाकाल:
29.1.2006
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