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"आदमी / ओ पवित्र नदी / केशव" के अवतरणों में अंतर
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आदमियों की बस्ती में भी | आदमियों की बस्ती में भी |
20:41, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
आदमियों की बस्ती में भी
आदमी की तलाश है
यह कैसा
अविश्वास है
बनत्ते-बनते जिसके
कितना कुछ निचुड़ जाता है
और टूटते वक्त
बस कहीं से भी कुछ
नमालूम सा
उखड जाता है
फिर दुख का अंधड़
वृक्ष की तरह फैलते आदमी को
झकझोरता है
टहनी-टहनी
पत्ता-पत्ता
बस यहीं
आदमी को
उसका आत्मविश्वास पुकारता है
जिसे वह
अंधड़ से गुज़रकर स्वीकारता है