"चाहो तो तुम बुलाओ / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) |
|||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{KKGlobal}} |
− | }} | + | {{KKRachna |
− | तेरी राह में खड़े,हैं चाहो तो तुम बुलाओ। | + | |रचनाकार=रमा द्विवेदी |
− | चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥ | + | }} |
− | तुमने बनाया दासी,तुमने बनाया वनवासी, | + | {{KKCatKavita}} |
− | तुमने बनाया पत्थर,तुमने बनाया देवी। | + | {{KKCatGeet}} |
− | अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ? | + | <poem> |
− | तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥ | + | तेरी राह में खड़े, हैं चाहो तो तुम बुलाओ। |
− | तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे | + | चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥ |
− | मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे। | + | |
− | अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ? | + | तुमने बनाया दासी, तुमने बनाया वनवासी, |
− | तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥ | + | तुमने बनाया पत्थर, तुमने बनाया देवी। |
− | कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया, | + | अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ? |
− | कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया। | + | तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥ |
− | अब और क्या बचा है,चाहो तो तुम बताओ? | + | |
− | तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥ | + | तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे, |
− | तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम, | + | मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे। |
− | फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम। | + | अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ? |
− | अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ? | + | तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥ |
− | तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥ | + | |
− | इस युग से पूछते हैं,कब तक रहेंगे शापित, | + | कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया, |
− | हम खुद को ढूँढ़ते हैं,अपनों के बीच अब तक। | + | कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया। |
− | अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ। | + | अब और क्या बचा है, चाहो तो तुम बताओ? |
− | तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥< | + | तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बुलाओ॥ |
+ | |||
+ | तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम, | ||
+ | फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम। | ||
+ | अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ? | ||
+ | तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥ | ||
+ | |||
+ | इस युग से पूछते हैं, कब तक रहेंगे शापित, | ||
+ | हम खुद को ढूँढ़ते हैं, अपनों के बीच अब तक। | ||
+ | अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ। | ||
+ | तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥ | ||
+ | </poem> |
21:55, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
तेरी राह में खड़े, हैं चाहो तो तुम बुलाओ।
चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥
तुमने बनाया दासी, तुमने बनाया वनवासी,
तुमने बनाया पत्थर, तुमने बनाया देवी।
अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥
तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे,
मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे।
अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ?
तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥
कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया,
कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया।
अब और क्या बचा है, चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बुलाओ॥
तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम,
फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम।
अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ?
तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥
इस युग से पूछते हैं, कब तक रहेंगे शापित,
हम खुद को ढूँढ़ते हैं, अपनों के बीच अब तक।
अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ।
तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥