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जीवन का यह चलन / रमा द्विवेदी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में,<br>
पायल बजे छनन-छनन मेरे देश में।<br><br>
 
शहनाइयाँ कहीं बज रहीं,<br>
ड़ोलियाँ कहीं सज रहीं,<br>
कंगना करें खनन-खनन मेरे देश में…<br>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में। <br><br>
 
बगिया कहीं महक रही,<br>
कहीं तितलियाँ बहक रहीं,<br>
भौरे फिरैं चमन-चमन मेरे देश में..<br>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में। <br><br>
 
कहीं बदलियाँ बरस रहीं,<br>
कहीं सजनियाँ तरस रहीं,<br>
आँसू गिरैं घनन-घनन मेरे देश में…<br>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में। <br><br>
 
हिमगिरि कहीं विराट है,<br>
सागर कहीं विशाल है,<br>
नदियाँ बहैं मगन-मगन मेरे देश में,<br>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में। <br><br>
 
कहीं योगी तप में लीन है,<br>
कहीं भोगी रस-विलीन है,<br>
जीवन का यह चलन-चलन है मेरे देश में..<br>
पवन चले सनन-सनन मेरे देश में। <br><br>
</poem>
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