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"ईश्वर एक लाठी है (कविता) / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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ईश्वर एक लाठी है | ईश्वर एक लाठी है | ||
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जिसके सहारे अब तक | जिसके सहारे अब तक | ||
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चल रहे हैं पिता | चल रहे हैं पिता | ||
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मैं जानता हूँ कहाँ-कहाँ | मैं जानता हूँ कहाँ-कहाँ | ||
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दरक गई है उनकी | दरक गई है उनकी | ||
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यह कमज़ोर लाठी | यह कमज़ोर लाठी | ||
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रात में जब सोते हैं पिता | रात में जब सोते हैं पिता | ||
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लाठी के अन्दर चलते हैं घुन | लाठी के अन्दर चलते हैं घुन | ||
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वे उनकी नींद में पहुँच जाते हैं | वे उनकी नींद में पहुँच जाते हैं | ||
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लाठी पिता का तीसरा पैर है | लाठी पिता का तीसरा पैर है | ||
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उन्होंने नहीं बदली यह लाठी | उन्होंने नहीं बदली यह लाठी | ||
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उसे तेल-फुलेल लगाकर | उसे तेल-फुलेल लगाकर | ||
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किया है मज़बूत | किया है मज़बूत | ||
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कोई विपत्ति आती है | कोई विपत्ति आती है | ||
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वे दन से तान देते हैं लाठी | वे दन से तान देते हैं लाठी | ||
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वे हमेशा यात्रा में | वे हमेशा यात्रा में | ||
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ले जाते रहे उसे साथ | ले जाते रहे उसे साथ | ||
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और बमक कर कहते हैं | और बमक कर कहते हैं | ||
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क्या दुनिया में होगी किसी के पास | क्या दुनिया में होगी किसी के पास | ||
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इतनी सुन्दर मज़बूत लाठी! | इतनी सुन्दर मज़बूत लाठी! | ||
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पिता अब तक नहीं जान पाए कि | पिता अब तक नहीं जान पाए कि | ||
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ईश्वर किस कोठ की लाठी है | ईश्वर किस कोठ की लाठी है | ||
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23:53, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
ईश्वर एक लाठी है
जिसके सहारे अब तक
चल रहे हैं पिता
मैं जानता हूँ कहाँ-कहाँ
दरक गई है उनकी
यह कमज़ोर लाठी
रात में जब सोते हैं पिता
लाठी के अन्दर चलते हैं घुन
वे उनकी नींद में पहुँच जाते हैं
लाठी पिता का तीसरा पैर है
उन्होंने नहीं बदली यह लाठी
उसे तेल-फुलेल लगाकर
किया है मज़बूत
कोई विपत्ति आती है
वे दन से तान देते हैं लाठी
वे हमेशा यात्रा में
ले जाते रहे उसे साथ
और बमक कर कहते हैं
क्या दुनिया में होगी किसी के पास
इतनी सुन्दर मज़बूत लाठी!
पिता अब तक नहीं जान पाए कि
ईश्वर किस कोठ की लाठी है