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"उस जनपद का कवि हूँ (कविता) / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है,<br>
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नंगा है, अनजान है, कला--नहीं जानता<br>
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कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता<br>
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कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है<br>
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कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है  
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अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता  
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चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता<br>
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वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता  
विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में।<br>
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चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता  
धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण<br>
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सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।<br>
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धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण  
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सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।  
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12:50, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है,
नंगा है, अनजान है, कला--नहीं जानता
कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता
कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है
उसके जीवन का सोता, इतिहास ही बता
सकता है। वह उदासीन बिलकुल अपने से,
अपने समाज से है; दुनिया को सपने से
अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची; अब समाज में
वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता
चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता
विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में।
धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण
सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।