भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शहर नहीं मरा / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (शहर नहीं मरा/ श्रीनिवास श्रीकांत का नाम बदलकर शहर नहीं मरा / श्रीनिवास श्रीकांत कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत | |संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत | ||
}} | }} | ||
− | <poem>बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी | ||
शहर नहीं मरा | शहर नहीं मरा | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 18: | ||
हवेलियां खड़े रहे | हवेलियां खड़े रहे | ||
ध्यानस्थ खड़े रहे | ध्यानस्थ खड़े रहे | ||
− | |||
देवदारुओं से लिपटी | देवदारुओं से लिपटी |
15:41, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
शहर नहीं मरा
गाया प्रेत-पिशाचों ने मंगल
कूदे-खिड़कियों से बेनक़ाब आदमी
पकड़ने उन बेहया आवाज़ों को
उड़े बाज़ तिलस्मी जंगलों की दिशा में
जंगले
रेलिंग
हवेलियां खड़े रहे
ध्यानस्थ खड़े रहे
देवदारुओं से लिपटी
फ़िरंगियों के पाप-प्रेम की
खिलखिलाहटें पगलायीं
बुलाहटें कल शाम के इतिहास की
माथा फोड़ती रहीं पुराने चण्डुखानों की चौखटों पर
और आते-जाते अजनबी का बाजू पकड़
मौत की घाटियों में स्किइंग करती रही
झबरी आवारा हवा