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"एक मन: स्थिति / स्नेहमयी चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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बार-बार अपनी ही कविताओं को  
 
बार-बार अपनी ही कविताओं को  
 
 
पढ़ने की इच्छा करता हुआ मन
 
पढ़ने की इच्छा करता हुआ मन
 
 
किसी दूसरे के बढ़े हुए हाथ की
 
किसी दूसरे के बढ़े हुए हाथ की
 
 
तलाश में घूमता है।  
 
तलाश में घूमता है।  
 
  
 
अजब स्थिति है :
 
अजब स्थिति है :
 
 
बदराया हुआ आसमान
 
बदराया हुआ आसमान
 
 
न बरसता है, न खुलता।  
 
न बरसता है, न खुलता।  
 
  
 
सारा शहर
 
सारा शहर
 
 
बंद खिड़कियों वाला
 
बंद खिड़कियों वाला
 
 
एक कमरा हो गया है।
 
एक कमरा हो गया है।
  
 
आड़ी-तिरछी रेखाएँ
 
आड़ी-तिरछी रेखाएँ
 
 
बनाता हुआ धुआँ
 
बनाता हुआ धुआँ
 
 
जब बादलों की एक और परत बन जाता है--
 
जब बादलों की एक और परत बन जाता है--
 
 
मैं अपने बूढ़े पिता को पत्र लिखने लगती हूँ,
 
मैं अपने बूढ़े पिता को पत्र लिखने लगती हूँ,
 
 
जिसमें भाई,बहनों और सफ़ेद बालों वाली माँ
 
जिसमें भाई,बहनों और सफ़ेद बालों वाली माँ
 
 
की कुशल-क्षेम के प्रति उत्सुकता है।  
 
की कुशल-क्षेम के प्रति उत्सुकता है।  
 
  
 
मेरे सामने :
 
मेरे सामने :
 
 
पौधों को स्थानांतरित करने की
 
पौधों को स्थानांतरित करने की
 
 
प्रक्रिया में माली
 
प्रक्रिया में माली
 
 
हर रंग, हर आकार के फूलों को
 
हर रंग, हर आकार के फूलों को
 
 
पास-पास रख चुका है।  
 
पास-पास रख चुका है।  
 
  
 
जाने किस अभाव में
 
जाने किस अभाव में
 
 
ओस-भीगी घास  
 
ओस-भीगी घास  
 
 
जिस पर मैं बैठी हूँ
 
जिस पर मैं बैठी हूँ
 
 
और गीली लगने लगी है।  
 
और गीली लगने लगी है।  
 
  
 
हालाँकि
 
हालाँकि
 
 
झर-झर कर
 
झर-झर कर
 
 
पीपल की सूखी पत्तियाँ
 
पीपल की सूखी पत्तियाँ
 
 
एकत्र हो चुकी हैं,
 
एकत्र हो चुकी हैं,
 
 
मेरे पीछे आ कर।
 
मेरे पीछे आ कर।
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16:10, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बार-बार अपनी ही कविताओं को
पढ़ने की इच्छा करता हुआ मन
किसी दूसरे के बढ़े हुए हाथ की
तलाश में घूमता है।

अजब स्थिति है :
बदराया हुआ आसमान
न बरसता है, न खुलता।

सारा शहर
बंद खिड़कियों वाला
एक कमरा हो गया है।

आड़ी-तिरछी रेखाएँ
बनाता हुआ धुआँ
जब बादलों की एक और परत बन जाता है--
मैं अपने बूढ़े पिता को पत्र लिखने लगती हूँ,
जिसमें भाई,बहनों और सफ़ेद बालों वाली माँ
की कुशल-क्षेम के प्रति उत्सुकता है।

मेरे सामने :
पौधों को स्थानांतरित करने की
प्रक्रिया में माली
हर रंग, हर आकार के फूलों को
पास-पास रख चुका है।

जाने किस अभाव में
ओस-भीगी घास
जिस पर मैं बैठी हूँ
और गीली लगने लगी है।

हालाँकि
झर-झर कर
पीपल की सूखी पत्तियाँ
एकत्र हो चुकी हैं,
मेरे पीछे आ कर।