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"ऐश्ववर्य तो तुम्हें नहीं देगा यह / सुदीप बनर्जी" के अवतरणों में अंतर
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17:11, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण
ऎश्वर्य तो तुम्हें नहीं देगा यह जीवन
लगातार भटकते दुनिया भर में
तुम रह जाओगे अपने जीवन में
याद रह जाएगी कोई एक कविता
अपना आख़िरी दिनों का उदास चेहरा
उपहास करते दरख़्तों का दिन-रात उगना
जड़ों की शिराएँ तुम्हारे काँपते पैरों से
धरती के मर्मस्थल तक
आजीवन क्लान्ति के क्लेश पहुँचाती हुईं
ऎश्वर्य तो नहीं ही फिर भी
भाषाएँ नहीं होती खलास ।
रचनाकाल : 1992