भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"केसरि से बरन सुबरन / बिहारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (केसरि से बरन सुबरन का नाम बदलकर केसरि से बरन सुबरन / बिहारी कर दिया गया है)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=बिहारी  
 
|रचनाकार=बिहारी  
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
}}
+
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
[[Categrory: कवित्त]]
 +
<poem>
 
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
 
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
 
+
:::बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
+
 
+
 
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
 
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
 
+
:::उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
+
 
+
 
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
 
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
 
+
:::चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
+
 
+
 
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
 
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
 
+
:::जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।
+
</poem>

19:43, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण

Categrory: कवित्त


केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।