"मौत एक मांदगी का वक्फ़ा है / विजय कुमार" के अवतरणों में अंतर
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'''मौत एक मांदगी का वक्फ़ा है''' | '''मौत एक मांदगी का वक्फ़ा है''' | ||
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'''यानी आगे चलकर दम लेंगे !''' | '''यानी आगे चलकर दम लेंगे !''' | ||
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::::'''--मीर तक़ी मीर''' | ::::'''--मीर तक़ी मीर''' | ||
जब हम | जब हम | ||
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बात बेबात हँसने के आदी हो जाएंगे | बात बेबात हँसने के आदी हो जाएंगे | ||
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एक-दूसरे के | एक-दूसरे के | ||
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किसी और तरह से क़रीब आएंगे | किसी और तरह से क़रीब आएंगे | ||
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हमें गुस्सा रह-रहकर | हमें गुस्सा रह-रहकर | ||
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केवल फुरसत में आएगा | केवल फुरसत में आएगा | ||
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हम अपने अभावों की चर्चा में | हम अपने अभावों की चर्चा में | ||
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फिर पड़ोसियों का ज़िक्र नहीं करेंगे | फिर पड़ोसियों का ज़िक्र नहीं करेंगे | ||
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मैं कहूंगा शुरू जवानी के सपनों के लिए | मैं कहूंगा शुरू जवानी के सपनों के लिए | ||
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अब भी वफ़ादार है कोई | अब भी वफ़ादार है कोई | ||
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मैं अपने अकेलेपन में | मैं अपने अकेलेपन में | ||
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तुम्हारे अकेलेपन को ढूंढता हुआ आऊंगा | तुम्हारे अकेलेपन को ढूंढता हुआ आऊंगा | ||
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हवा बहुत तेज़ होगी | हवा बहुत तेज़ होगी | ||
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हमारे काँपते हुए हाथ | हमारे काँपते हुए हाथ | ||
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एक दूसरे के क्षत-विक्षत चेहरों को टटोलेंगे | एक दूसरे के क्षत-विक्षत चेहरों को टटोलेंगे | ||
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फिर एक हूक उठेगी पुराने दिनों की | फिर एक हूक उठेगी पुराने दिनों की | ||
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हम मूर्ख फ़रिश्तों की तरह होंगे | हम मूर्ख फ़रिश्तों की तरह होंगे | ||
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दुनिया की अच्छाई के बारे में यक़ीन करते हुए | दुनिया की अच्छाई के बारे में यक़ीन करते हुए | ||
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हमें तब भी मालूम नहीं होगा | हमें तब भी मालूम नहीं होगा | ||
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कि कहाँ बोलना बन्द कर देना चाहिए | कि कहाँ बोलना बन्द कर देना चाहिए | ||
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यह जीवन एक मरीचिका है, मरीचिका | यह जीवन एक मरीचिका है, मरीचिका | ||
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हम में से ही कोई कहेगा | हम में से ही कोई कहेगा | ||
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हम फिर भी किसी और जीवन की तलाश में होंगे | हम फिर भी किसी और जीवन की तलाश में होंगे | ||
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एकदम थके हुए | एकदम थके हुए | ||
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भाग्य से रीते । | भाग्य से रीते । | ||
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02:18, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण
मौत एक मांदगी का वक्फ़ा है
यानी आगे चलकर दम लेंगे !
--मीर तक़ी मीर
जब हम
बात बेबात हँसने के आदी हो जाएंगे
एक-दूसरे के
किसी और तरह से क़रीब आएंगे
हमें गुस्सा रह-रहकर
केवल फुरसत में आएगा
हम अपने अभावों की चर्चा में
फिर पड़ोसियों का ज़िक्र नहीं करेंगे
मैं कहूंगा शुरू जवानी के सपनों के लिए
अब भी वफ़ादार है कोई
मैं अपने अकेलेपन में
तुम्हारे अकेलेपन को ढूंढता हुआ आऊंगा
हवा बहुत तेज़ होगी
हमारे काँपते हुए हाथ
एक दूसरे के क्षत-विक्षत चेहरों को टटोलेंगे
फिर एक हूक उठेगी पुराने दिनों की
हम मूर्ख फ़रिश्तों की तरह होंगे
दुनिया की अच्छाई के बारे में यक़ीन करते हुए
हमें तब भी मालूम नहीं होगा
कि कहाँ बोलना बन्द कर देना चाहिए
यह जीवन एक मरीचिका है, मरीचिका
हम में से ही कोई कहेगा
हम फिर भी किसी और जीवन की तलाश में होंगे
एकदम थके हुए
भाग्य से रीते ।