भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शब्द / भविष्य के नाम पर / केशव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> लिखकर भी...) |
छो (शब्द. / केशव का नाम बदलकर शब्द / भविष्य के नाम पर / केशव कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:51, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण
लिखकर भी
पूरा नहीं उतरता
भीतर का सच
रंग
जम जाते हैं
चित्र की हथेलियों पर
बार-बार होती है दस्तक
भीतर
गुहा द्वार पर
पर
पुतलियों में जम जाती है
एक झील
शब्द
कर लेते हैं आत्महत्या
खिड़कियों से कूद
गुहा द्वार खुलने से पहले
कथावाचक
जिन आख्यानों के सहारे
प्रस्तुत करते हैं समाधान
वह प्रभु
जन्मता तो है
पर मुर्दा
कि नपुंसक हैं ये शब्द
जो नहीं लाँघते
लक्ष्मण-रेखाएँ
खोलते नहीं घाव
और अनुभव
हमेशा छूट जाता है
अपने सँस्करण छाप.