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"गांधीजी के जन्मदिन पर / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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मैं फिर जनम लूंगा
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लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
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तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?  
 
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तुम मुझकों दोषी ठहराओ  
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कल फिर आऊँगा ।  
 
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तुम मुझकों दोषी ठहराओ<br>
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पर मैं गाऊँगा<br>
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मैं मर जाऊँगा<br>
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लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा<br>
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कल फिर आऊँगा ।<br>
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13:17, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

मैं फिर जनम लूंगा
फिर मैं
इसी जगह आउंगा
उचटती निगाहों की भीड़ में
अभावों के बीच
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा
लँगड़ाकर चलते हुए पावों को
कंधा दूँगा
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को
बाँहों में उठाऊँगा ।

इस समूह में
इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में
कैसा दर्द है
कोई नहीं सुनता !
पर इन आवाजों को
और इन कराहों को
दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा ।

मेरी तो आदत है
रोशनी जहाँ भी हो
उसे खोज लाऊँगा
कातरता, चु्प्पी या चीखें,
या हारे हुओं की खीज
जहाँ भी मिलेगी
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा ।

जीवन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है
अगन-भट्ठियों में झोंका है,
मैने वहाँ भी
ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये
बचने के नहीं,
तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा ?
तुम मुझकों दोषी ठहराओ
मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है
पर मैं गाऊँगा
चाहे इस प्रार्थना सभा में
तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ
मैं मर जाऊँगा
लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा
कल फिर आऊँगा ।