"चांद का मुँह टेढ़ा है (कविता) / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध | |रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध | ||
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नगर के बीचों-बीच | नगर के बीचों-बीच | ||
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आधी रात--अंधेरे की काली स्याह | आधी रात--अंधेरे की काली स्याह | ||
− | |||
::शिलाओं से बनी हुई | ::शिलाओं से बनी हुई | ||
भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए | भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए | ||
− | |||
ऊँचे-ऊँचे कन्धों पर | ऊँचे-ऊँचे कन्धों पर | ||
− | |||
चांदनी की फैली हुई सँवलायी झालरें। | चांदनी की फैली हुई सँवलायी झालरें। | ||
− | |||
कारखाना--अहाते के उस पार | कारखाना--अहाते के उस पार | ||
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धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे | धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे | ||
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उद्गार--चिह्नाकार--मीनार | उद्गार--चिह्नाकार--मीनार | ||
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मीनारों के बीचों-बीच | मीनारों के बीचों-बीच | ||
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चांद का है टेढ़ा मुँह!! | चांद का है टेढ़ा मुँह!! | ||
− | |||
भयानक स्याह सन तिरपन का चांद वह !! | भयानक स्याह सन तिरपन का चांद वह !! | ||
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गगन में करफ़्यू है | गगन में करफ़्यू है | ||
− | |||
धरती पर चुपचाप ज़हरीली छिः थूः है !! | धरती पर चुपचाप ज़हरीली छिः थूः है !! | ||
− | |||
पीपल के खाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के, | पीपल के खाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के, | ||
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पैठे हैं खाली हुए कारतूस । | पैठे हैं खाली हुए कारतूस । | ||
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गंजे-सिर चांद की सँवलायी किरनों के जासूस | गंजे-सिर चांद की सँवलायी किरनों के जासूस | ||
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साम-सूम नगर में धीरे-धीरे घूम-घाम | साम-सूम नगर में धीरे-धीरे घूम-घाम | ||
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नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे है !! | नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे है !! | ||
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चांद की कनखियों की कोण-गामी किरनें | चांद की कनखियों की कोण-गामी किरनें | ||
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पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है | पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है | ||
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अंधेरे में, पट्टियाँ । | अंधेरे में, पट्टियाँ । | ||
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देखती है नगर की ज़िन्दगी का टूटा-फूटा | देखती है नगर की ज़िन्दगी का टूटा-फूटा | ||
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उदास प्रसार वह । | उदास प्रसार वह । | ||
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समीप विशालकार | समीप विशालकार | ||
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अंधियाले लाल पर | अंधियाले लाल पर | ||
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सूनेपन की स्याही में डूबी हुई | सूनेपन की स्याही में डूबी हुई | ||
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चांदनी भी सँवलायी हुई है !! | चांदनी भी सँवलायी हुई है !! | ||
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भीमाकार पुलों के बहुत नीचे, भयभीत | भीमाकार पुलों के बहुत नीचे, भयभीत | ||
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मनुष्य-बस्ती के बियाबान तटों पर | मनुष्य-बस्ती के बियाबान तटों पर | ||
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बहते हुए पथरीले नालों की धारा में | बहते हुए पथरीले नालों की धारा में | ||
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धराशायी चांदनी के होंठ काले पड़ गये | धराशायी चांदनी के होंठ काले पड़ गये | ||
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हरिजन गलियों में | हरिजन गलियों में | ||
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लटकी है पेड़ पर | लटकी है पेड़ पर | ||
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कुहासे के भूतों की साँवली चूनरी-- | कुहासे के भूतों की साँवली चूनरी-- | ||
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चूनरी में अटकी है कंजी आँख गंजे-सिर | चूनरी में अटकी है कंजी आँख गंजे-सिर | ||
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टेढ़े-मुँह चांद की । | टेढ़े-मुँह चांद की । | ||
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बारह का वक़्त है, | बारह का वक़्त है, | ||
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भुसभुसे उजाले का फुसफुसाता षड्यन्त्र | भुसभुसे उजाले का फुसफुसाता षड्यन्त्र | ||
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शहर में चारों ओर; | शहर में चारों ओर; | ||
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ज़माना भी सख्त है !! | ज़माना भी सख्त है !! | ||
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अजी, इस मोड़ पर | अजी, इस मोड़ पर | ||
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बरगद की घनघोर शाखाओं की गठियल | बरगद की घनघोर शाखाओं की गठियल | ||
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अजगरी मेहराब-- | अजगरी मेहराब-- | ||
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मरे हुए ज़मानों की संगठित छायाओं में | मरे हुए ज़मानों की संगठित छायाओं में | ||
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:::बसी हुई | :::बसी हुई | ||
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सड़ी-बुसी बास लिये-- | सड़ी-बुसी बास लिये-- | ||
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फैली है गली के | फैली है गली के | ||
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मुहाने में चुपचाप । | मुहाने में चुपचाप । | ||
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लोगों के अरे ! आने-जाने में चुपचाप, | लोगों के अरे ! आने-जाने में चुपचाप, | ||
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अजगरी कमानी से गिरती है टिप-टिप | अजगरी कमानी से गिरती है टिप-टिप | ||
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फड़फड़ाते पक्षियों की बीट-- | फड़फड़ाते पक्षियों की बीट-- | ||
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मानो समय की बीट हो !! | मानो समय की बीट हो !! | ||
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गगन में कर्फ़्यू है, | गगन में कर्फ़्यू है, | ||
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वृक्षों में बैठे हुए पक्षियों पर करफ़्यू है, | वृक्षों में बैठे हुए पक्षियों पर करफ़्यू है, | ||
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धरती पर किन्तु अजी ! ज़हरीली छिः थूः है । | धरती पर किन्तु अजी ! ज़हरीली छिः थूः है । | ||
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बरगद की डाल एक | बरगद की डाल एक | ||
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मुहाने से आगे फैल | मुहाने से आगे फैल | ||
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सड़क पर बाहरी | सड़क पर बाहरी | ||
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लटकती है इस तरह-- | लटकती है इस तरह-- | ||
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मानो कि आदमी के जनम के पहले से | मानो कि आदमी के जनम के पहले से | ||
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पृथ्वी की छाती पर | पृथ्वी की छाती पर | ||
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जंगली मैमथ की सूँड़ सूँघ रही हो | जंगली मैमथ की सूँड़ सूँघ रही हो | ||
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हवा के लहरीले सिफ़रों को आज भी | हवा के लहरीले सिफ़रों को आज भी | ||
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बरगद की घनी-घनी छाँव में | बरगद की घनी-घनी छाँव में | ||
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फूटी हुई चूड़ियों की सूनी-सूनी कलाई-सी | फूटी हुई चूड़ियों की सूनी-सूनी कलाई-सी | ||
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::सूनी-सूनी गलियों में | ::सूनी-सूनी गलियों में | ||
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ग़रीबों के ठाँव में-- | ग़रीबों के ठाँव में-- | ||
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चौराहे पर खड़े हुए | चौराहे पर खड़े हुए | ||
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भैरों की सिन्दूरी | भैरों की सिन्दूरी | ||
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गेरुई मूरत के पथरीले व्यंग्य स्मित पर | गेरुई मूरत के पथरीले व्यंग्य स्मित पर | ||
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टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी, | टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी, | ||
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तिलिस्मी चांद की राज़-भरी झाइयाँ !! | तिलिस्मी चांद की राज़-भरी झाइयाँ !! | ||
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तजुर्बों का ताबूत | तजुर्बों का ताबूत | ||
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ज़िन्दा यह बरगद | ज़िन्दा यह बरगद | ||
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जानता कि भैरों यह कौन है !! | जानता कि भैरों यह कौन है !! | ||
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कि भैरों की चट्टानी पीठ पर | कि भैरों की चट्टानी पीठ पर | ||
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पैरों की मज़बूत | पैरों की मज़बूत | ||
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पत्थरी-सिन्दूरी ईट पर | पत्थरी-सिन्दूरी ईट पर | ||
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भभकते वर्णों के लटकते पोस्टर | भभकते वर्णों के लटकते पोस्टर | ||
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ज्वलन्त अक्षर !! | ज्वलन्त अक्षर !! | ||
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सामने है अंधियाला ताल और | सामने है अंधियाला ताल और | ||
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स्याह उसी ताल पर | स्याह उसी ताल पर | ||
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सँवलायी चांदनी, | सँवलायी चांदनी, | ||
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समय का घण्टाघर, | समय का घण्टाघर, | ||
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निराकार घण्टाघर, | निराकार घण्टाघर, | ||
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गगन में चुपचाप अनाकार खड़ा है !! | गगन में चुपचाप अनाकार खड़ा है !! | ||
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परन्तु, परन्तु...बतलाते | परन्तु, परन्तु...बतलाते | ||
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ज़िन्दगी के काँटे ही | ज़िन्दगी के काँटे ही | ||
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कितनी रात बीत गयी | कितनी रात बीत गयी | ||
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चप्पलों की छपछप, | चप्पलों की छपछप, | ||
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गली के मुहाने से अजीब-सी आवाज़, | गली के मुहाने से अजीब-सी आवाज़, | ||
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फुसफुसाते हुए शब्द ! | फुसफुसाते हुए शब्द ! | ||
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जंगल की डालों से गुज़रती हवाओं की सरसर | जंगल की डालों से गुज़रती हवाओं की सरसर | ||
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गली में ज्यों कह जाय | गली में ज्यों कह जाय | ||
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इशारों के आशय, | इशारों के आशय, | ||
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हवाओं की लहरों के आकार-- | हवाओं की लहरों के आकार-- | ||
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किन्हीं ब्रह्मराक्षसों के निराकार | किन्हीं ब्रह्मराक्षसों के निराकार | ||
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अनाकार | अनाकार | ||
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मानो बहस छेड़ दें | मानो बहस छेड़ दें | ||
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बहस जैसे बढ़ जाय | बहस जैसे बढ़ जाय | ||
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निर्णय पर चली आय | निर्णय पर चली आय | ||
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वैसे शब्द बार-बार | वैसे शब्द बार-बार | ||
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गलियों की आत्मा में | गलियों की आत्मा में | ||
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बोलते हैं एकाएक | बोलते हैं एकाएक | ||
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अंधेरे के पेट में से | अंधेरे के पेट में से | ||
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ज्वालाओं की आँत बाहर निकल आय | ज्वालाओं की आँत बाहर निकल आय | ||
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वैसे, अरे, शब्दों की धार एक | वैसे, अरे, शब्दों की धार एक | ||
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बिजली के टॉर्च की रोशनी की मार एक | बिजली के टॉर्च की रोशनी की मार एक | ||
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बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर | बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर | ||
− | + | फैल गयी अकस्मात् | |
− | फैल गयी अकस्मात् | + | बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर |
− | बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर | + | फैल गये हाथ दो |
− | फैल गये हाथ दो | + | |
− | + | ||
मानो ह्रदय में छिपी हुई बातों ने सहसा | मानो ह्रदय में छिपी हुई बातों ने सहसा | ||
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अंधेरे से बाहर आ भुजाएँ पसारी हों | अंधेरे से बाहर आ भुजाएँ पसारी हों | ||
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फैले गये हाथ दो | फैले गये हाथ दो | ||
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चिपका गये पोस्टर | चिपका गये पोस्टर | ||
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बाँके तिरछे वर्ण और | बाँके तिरछे वर्ण और | ||
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लाल नीले घनघोर | लाल नीले घनघोर | ||
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हड़ताली अक्षर | हड़ताली अक्षर | ||
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इन्ही हलचलों के ही कारण तो सहसा | इन्ही हलचलों के ही कारण तो सहसा | ||
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बरगद में पले हुए पंखों की डरी हुई | बरगद में पले हुए पंखों की डरी हुई | ||
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चौंकी हुई अजीब-सी गन्दी फड़फड़ | चौंकी हुई अजीब-सी गन्दी फड़फड़ | ||
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अंधेरे की आत्मा से करते हुए शिकायत | अंधेरे की आत्मा से करते हुए शिकायत | ||
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काँव-काँव करते हुए पक्षियों के जमघट | काँव-काँव करते हुए पक्षियों के जमघट | ||
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उड़ने लगे अकस्मात् | उड़ने लगे अकस्मात् | ||
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मानो अंधेरे के | मानो अंधेरे के | ||
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ह्रदय में सन्देही शंकाओं के पक्षाघात !! | ह्रदय में सन्देही शंकाओं के पक्षाघात !! | ||
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मद्धिम चांदनी में एकाएक एकाएक | मद्धिम चांदनी में एकाएक एकाएक | ||
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खपरैलों पर ठहर गयी | खपरैलों पर ठहर गयी | ||
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बिल्ली एक चुपचाप | बिल्ली एक चुपचाप | ||
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रजनी के निजी गुप्तचरों की प्रतिनिधि | रजनी के निजी गुप्तचरों की प्रतिनिधि | ||
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पूँछ उठाये वह | पूँछ उठाये वह | ||
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जंगली तेज़ | जंगली तेज़ | ||
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आँख | आँख | ||
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फैलाये | फैलाये | ||
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यमदूत-पुत्री-सी | यमदूत-पुत्री-सी | ||
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(सभी देह स्याह, पर | (सभी देह स्याह, पर | ||
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पंजे सिर्फ़ श्वेत और | पंजे सिर्फ़ श्वेत और | ||
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ख़ून टपकाते हुए नाख़ून) | ख़ून टपकाते हुए नाख़ून) | ||
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देखती है मार्जार | देखती है मार्जार | ||
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चिपकाता कौन है | चिपकाता कौन है | ||
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मकानों की पीठ पर | मकानों की पीठ पर | ||
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अहातों की भीत पर | अहातों की भीत पर | ||
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बरगद की अजगरी डालों के फन्दों पर | बरगद की अजगरी डालों के फन्दों पर | ||
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अंधेरे के कन्धों पर | अंधेरे के कन्धों पर | ||
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चिपकाता कौन है ? | चिपकाता कौन है ? | ||
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चिपकाता कौन है | चिपकाता कौन है | ||
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हड़ताली पोस्टर | हड़ताली पोस्टर | ||
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बड़े-बड़े अक्षर | बड़े-बड़े अक्षर | ||
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बाँके-तिरछे वर्ण और | बाँके-तिरछे वर्ण और | ||
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लम्बे-चौड़े घनघोर | लम्बे-चौड़े घनघोर | ||
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लाल-नीले भयंकर | लाल-नीले भयंकर | ||
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हड़ताली पोस्टर !! | हड़ताली पोस्टर !! | ||
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टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी भी ख़ूब है | टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी भी ख़ूब है | ||
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मकान-मकान घुस लोहे के गज़ों की जाली | मकान-मकान घुस लोहे के गज़ों की जाली | ||
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::के झरोखों को पार कर | ::के झरोखों को पार कर | ||
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लिपे हुए कमरे में | लिपे हुए कमरे में | ||
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जेल के कपड़े-सी फैली है चांदनी, | जेल के कपड़े-सी फैली है चांदनी, | ||
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दूर-दूर काली-काली | दूर-दूर काली-काली | ||
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धारियों के बड़े-बड़े चौखट्टों के मोटे-मोटे | धारियों के बड़े-बड़े चौखट्टों के मोटे-मोटे | ||
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::कपड़े-सी फैली है | ::कपड़े-सी फैली है | ||
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लेटी है जालीदार झरोखे से आयी हुई | लेटी है जालीदार झरोखे से आयी हुई | ||
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जेल सुझाती हुई ऐयारी रोशनी !! | जेल सुझाती हुई ऐयारी रोशनी !! | ||
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अंधियाले ताल पर | अंधियाले ताल पर | ||
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काले घिने पंखों के बार-बार | काले घिने पंखों के बार-बार | ||
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चक्करों के मंडराते विस्तार | चक्करों के मंडराते विस्तार | ||
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घिना चिमगादड़-दल भटकता है चारों ओर | घिना चिमगादड़-दल भटकता है चारों ओर | ||
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मानो अहं के अवरुद्ध | मानो अहं के अवरुद्ध | ||
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अपावन अशुद्ध घेरे में घिरे हुए | अपावन अशुद्ध घेरे में घिरे हुए | ||
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नपुंसक पंखों की छटपटाती रफ़्तार | नपुंसक पंखों की छटपटाती रफ़्तार | ||
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घिना चिमगादड़-दल | घिना चिमगादड़-दल | ||
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भटकता है प्यासा-सा, | भटकता है प्यासा-सा, | ||
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बुद्धि की आँखों में | बुद्धि की आँखों में | ||
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स्वार्थों के शीशे-सा !! | स्वार्थों के शीशे-सा !! | ||
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बरगद को किन्तु सब | बरगद को किन्तु सब | ||
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पता था इतिहास, | पता था इतिहास, | ||
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कोलतारी सड़क पर खड़े हुए सर्वोच्च | कोलतारी सड़क पर खड़े हुए सर्वोच्च | ||
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गान्धी के पुतले पर | गान्धी के पुतले पर | ||
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बैठे हुए आँखों के दो चक्र | बैठे हुए आँखों के दो चक्र | ||
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यानी कि घुग्घू एक-- | यानी कि घुग्घू एक-- | ||
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तिलक के पुतले पर | तिलक के पुतले पर | ||
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बैठे हुए घुग्घू से | बैठे हुए घुग्घू से | ||
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बातचीत करते हुए | बातचीत करते हुए | ||
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कहता ही जाता है-- | कहता ही जाता है-- | ||
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"......मसान में...... | "......मसान में...... | ||
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मैंने भी सिद्धि की । | मैंने भी सिद्धि की । | ||
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देखो मूठ मार दी | देखो मूठ मार दी | ||
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मनुष्यों पर इस तरह......" | मनुष्यों पर इस तरह......" | ||
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तिलक के पुतले पर बैठे हुए घुग्घू ने | तिलक के पुतले पर बैठे हुए घुग्घू ने | ||
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देखा कि भयानक लाल मूँठ | देखा कि भयानक लाल मूँठ | ||
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काले आसमान में | काले आसमान में | ||
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तैरती-सी धीरे-धीरे जा रही | तैरती-सी धीरे-धीरे जा रही | ||
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− | |||
उद्गार-चिह्नाकार विकराल | उद्गार-चिह्नाकार विकराल | ||
− | |||
तैरता था लाल-लाल !! | तैरता था लाल-लाल !! | ||
− | |||
देख, उसने कहा कि वाह-वाह | देख, उसने कहा कि वाह-वाह | ||
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रात के जहाँपनाह | रात के जहाँपनाह | ||
− | |||
इसीलिए आज-कल | इसीलिए आज-कल | ||
− | |||
दिल के उजाले में भी अंधेरे की साख है | दिल के उजाले में भी अंधेरे की साख है | ||
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रात्रि की काँखों में दबी हुई | रात्रि की काँखों में दबी हुई | ||
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संस्कृति-पाखी के पंख है सुरक्षित !! | संस्कृति-पाखी के पंख है सुरक्षित !! | ||
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...पी गया आसमान | ...पी गया आसमान | ||
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रात्रि की अंधियाली सच्चाइयाँ घोंट के, | रात्रि की अंधियाली सच्चाइयाँ घोंट के, | ||
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मनुष्यों को मारने के ख़ूब हैं ये टोटके ! | मनुष्यों को मारने के ख़ूब हैं ये टोटके ! | ||
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गगन में करफ़्यू है, | गगन में करफ़्यू है, | ||
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ज़माने में ज़ोरदार ज़हरीली छिः थूः है !! | ज़माने में ज़ोरदार ज़हरीली छिः थूः है !! | ||
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सराफ़े में बिजली के बूदम | सराफ़े में बिजली के बूदम | ||
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खम्भों पर लटके हुए मद्धिम | खम्भों पर लटके हुए मद्धिम | ||
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दिमाग़ में धुन्ध है, | दिमाग़ में धुन्ध है, | ||
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चिन्ता है सट्टे की ह्रदय-विनाशिनी !! | चिन्ता है सट्टे की ह्रदय-विनाशिनी !! | ||
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रात्रि की काली स्याह | रात्रि की काली स्याह | ||
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कड़ाही से अकस्मात् | कड़ाही से अकस्मात् | ||
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सड़कों पर फैल गयी | सड़कों पर फैल गयी | ||
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सत्यों की मिठाई की चाशनी !! | सत्यों की मिठाई की चाशनी !! | ||
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टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी | टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी | ||
− | |||
भीमाकार पुलों के | भीमाकार पुलों के | ||
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ठीक नीचे बैठकर, | ठीक नीचे बैठकर, | ||
− | |||
चोरों-सी उचक्कों-सी | चोरों-सी उचक्कों-सी | ||
− | |||
नालों और झरनों के तटों पर | नालों और झरनों के तटों पर | ||
− | |||
किनारे-किनारे चल, | किनारे-किनारे चल, | ||
− | + | पानी पर झुके हुए | |
− | पानी पर झुके हुए | + | पेड़ों के नीचे बैठ, |
− | पेड़ों के नीचे बैठ, | + | |
− | + | ||
रात-बे-रात वह | रात-बे-रात वह | ||
− | |||
मछलियाँ फँसाती है | मछलियाँ फँसाती है | ||
− | |||
आवारा मछुओं-सी शोहदों-सी चांदनी | आवारा मछुओं-सी शोहदों-सी चांदनी | ||
− | |||
सड़कों के पिछवाड़े | सड़कों के पिछवाड़े | ||
− | |||
टूटे-फूटे दृश्यों में, | टूटे-फूटे दृश्यों में, | ||
− | |||
गन्दगी के काले-से नाले के झाग पर | गन्दगी के काले-से नाले के झाग पर | ||
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बदमस्त कल्पना-सी फैली थी रात-भर | बदमस्त कल्पना-सी फैली थी रात-भर | ||
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सेक्स के कष्टों के कवियों के काम-सी ! | सेक्स के कष्टों के कवियों के काम-सी ! | ||
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किंग्सवे में मशहूर | किंग्सवे में मशहूर | ||
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रात की है ज़िन्दगी ! | रात की है ज़िन्दगी ! | ||
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सड़कों की श्रीमान् | सड़कों की श्रीमान् | ||
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भारतीय फिरंगी दुकान, | भारतीय फिरंगी दुकान, | ||
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सुगन्धित प्रकाश में चमचमाता ईमान | सुगन्धित प्रकाश में चमचमाता ईमान | ||
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रंगीन चमकती चीज़ों के सुरभित | रंगीन चमकती चीज़ों के सुरभित | ||
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स्पर्शों में | स्पर्शों में | ||
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शीशों की सुविशाल झाँइयों के रमणीय | शीशों की सुविशाल झाँइयों के रमणीय | ||
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दृश्यों में | दृश्यों में | ||
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बसी थी चांदनी | बसी थी चांदनी | ||
− | |||
खूबसूरत अमरीकी मैग्ज़ीन-पृष्ठों-सी | खूबसूरत अमरीकी मैग्ज़ीन-पृष्ठों-सी | ||
− | |||
खुली थी, | खुली थी, | ||
− | |||
नंगी-सी नारियों के | नंगी-सी नारियों के | ||
− | |||
उघरे हुए अंगों के | उघरे हुए अंगों के | ||
− | |||
विभिन्न पोज़ों मे | विभिन्न पोज़ों मे | ||
− | |||
लेटी थी चांदनी | लेटी थी चांदनी | ||
− | |||
सफे़द | सफे़द | ||
− | |||
अण्डरवियर-सी, आधुनिक प्रतीकों में | अण्डरवियर-सी, आधुनिक प्रतीकों में | ||
− | |||
फैली थी | फैली थी | ||
− | |||
चांदनी ! | चांदनी ! | ||
− | |||
करफ़्यू नहीं यहाँ, पसन्दगी...सन्दली, | करफ़्यू नहीं यहाँ, पसन्दगी...सन्दली, | ||
− | |||
किंग्सवे में मशहूर रात की है ज़िन्दगी | किंग्सवे में मशहूर रात की है ज़िन्दगी | ||
− | |||
− | |||
अजी, यह चांदनी भी बड़ी मसखरी है !! | अजी, यह चांदनी भी बड़ी मसखरी है !! | ||
− | |||
तिमंज़ले की एक | तिमंज़ले की एक | ||
− | |||
खिड़की में बिल्ली के सफे़द धब्बे-सी | खिड़की में बिल्ली के सफे़द धब्बे-सी | ||
− | |||
चमकती हुई वह | चमकती हुई वह | ||
− | |||
समेटकर हाथ-पाँव | समेटकर हाथ-पाँव | ||
− | |||
किसी की ताक में | किसी की ताक में | ||
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बैठी हुई चुपचाप | बैठी हुई चुपचाप | ||
− | |||
धीरे से उतरती है | धीरे से उतरती है | ||
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रास्तों पर पथों पर; | रास्तों पर पथों पर; | ||
− | |||
चढ़ती है छतों पर | चढ़ती है छतों पर | ||
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गैलरी में घूम और | गैलरी में घूम और | ||
− | |||
खपरैलों पर चढ़कर | खपरैलों पर चढ़कर | ||
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नीमों की शाखों के सहारे | नीमों की शाखों के सहारे | ||
− | |||
आंगन में उतरकर | आंगन में उतरकर | ||
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कमरों में हलके-पाँव | कमरों में हलके-पाँव | ||
− | |||
देखती है, खोजती है-- | देखती है, खोजती है-- | ||
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शहर के कोनों के तिकोने में छुपी हुई | शहर के कोनों के तिकोने में छुपी हुई | ||
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चांदनी | चांदनी | ||
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सड़क के पेड़ों के गुम्बदों पर चढ़कर | सड़क के पेड़ों के गुम्बदों पर चढ़कर | ||
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महल उलाँघ कर | महल उलाँघ कर | ||
− | |||
मुहल्ले पार कर | मुहल्ले पार कर | ||
− | |||
गलियों की गुहाओं में दबे-पाँव | गलियों की गुहाओं में दबे-पाँव | ||
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खुफ़िया सुराग़ में | खुफ़िया सुराग़ में | ||
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गुप्तचरी ताक में | गुप्तचरी ताक में | ||
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जमी हुई खोजती है कौन वह | जमी हुई खोजती है कौन वह | ||
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कन्धों पर अंधेरे के | कन्धों पर अंधेरे के | ||
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चिपकाता कौन है | चिपकाता कौन है | ||
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भड़कीले पोस्टर, | भड़कीले पोस्टर, | ||
− | |||
लम्बे-चौड़े वर्ण और | लम्बे-चौड़े वर्ण और | ||
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बाँके-तिरछे घनघोर | बाँके-तिरछे घनघोर | ||
− | |||
लाल-नीले अक्षर । | लाल-नीले अक्षर । | ||
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− | |||
कोलतारी सड़क के बीचों-बीच खड़ी हुई | कोलतारी सड़क के बीचों-बीच खड़ी हुई | ||
− | |||
गान्धी की मूर्ति पर | गान्धी की मूर्ति पर | ||
− | |||
बैठे हुए घुग्घू ने | बैठे हुए घुग्घू ने | ||
− | |||
गाना शुरु किया, | गाना शुरु किया, | ||
− | |||
हिचकी की ताल पर | हिचकी की ताल पर | ||
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साँसों ने तब | साँसों ने तब | ||
− | |||
मर जाना | मर जाना | ||
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शुरु किया, | शुरु किया, | ||
− | |||
टेलीफ़ून-खम्भों पर थमे हुए तारों ने | टेलीफ़ून-खम्भों पर थमे हुए तारों ने | ||
− | |||
सट्टे के ट्रंक-कॉल-सुरों में | सट्टे के ट्रंक-कॉल-सुरों में | ||
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थर्राना और झनझनाना शुरु किया ! | थर्राना और झनझनाना शुरु किया ! | ||
− | |||
रात्रि का काला-स्याह | रात्रि का काला-स्याह | ||
− | |||
कन-टोप पहने हुए | कन-टोप पहने हुए | ||
− | |||
आसमान-बाबा ने हनुमान-चालीसा | आसमान-बाबा ने हनुमान-चालीसा | ||
− | |||
डूबी हुई बानी में गाना शुरु किया । | डूबी हुई बानी में गाना शुरु किया । | ||
− | |||
मसान के उजाड़ | मसान के उजाड़ | ||
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पेड़ों की अंधियाली शाख पर | पेड़ों की अंधियाली शाख पर | ||
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लाल-लाल लटके हुए | लाल-लाल लटके हुए | ||
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प्रकाश के चीथड़े-- | प्रकाश के चीथड़े-- | ||
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हिलते हुए, डुलते हुए, लपट के पल्लू । | हिलते हुए, डुलते हुए, लपट के पल्लू । | ||
− | |||
सचाई के अध-जले मुर्दों की चिताओं की | सचाई के अध-जले मुर्दों की चिताओं की | ||
− | |||
फटी हुई, फूटी हुई दहक में कवियों ने | फटी हुई, फूटी हुई दहक में कवियों ने | ||
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बहकती कविताएँ गाना शुरु किया । | बहकती कविताएँ गाना शुरु किया । | ||
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संस्कृति के कुहरीले धुएँ से भूतों के | संस्कृति के कुहरीले धुएँ से भूतों के | ||
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गोल-गोल मटकों से चेहरों ने | गोल-गोल मटकों से चेहरों ने | ||
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नम्रता के घिघियाते स्वांग में | नम्रता के घिघियाते स्वांग में | ||
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दुनिया को हाथ जोड़ | दुनिया को हाथ जोड़ | ||
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कहना शुरु किया-- | कहना शुरु किया-- | ||
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बुद्ध के स्तूप में | बुद्ध के स्तूप में | ||
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मानव के सपने | मानव के सपने | ||
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गड़ गये, गाड़े गये !! | गड़ गये, गाड़े गये !! | ||
− | |||
ईसा के पंख सब | ईसा के पंख सब | ||
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झड़ गये, झाड़े गये !! | झड़ गये, झाड़े गये !! | ||
− | |||
सत्य की | सत्य की | ||
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देवदासी-चोलियाँ उतारी गयी | देवदासी-चोलियाँ उतारी गयी | ||
− | |||
उघारी गयीं, | उघारी गयीं, | ||
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सपनों की आँते सब | सपनों की आँते सब | ||
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चीरी गयीं, फाड़ी गयीं !! | चीरी गयीं, फाड़ी गयीं !! | ||
− | |||
बाक़ी सब खोल है, | बाक़ी सब खोल है, | ||
− | |||
ज़िन्दगी में झोल है !! | ज़िन्दगी में झोल है !! | ||
− | |||
गलियों का सिन्दूरी विकराल | गलियों का सिन्दूरी विकराल | ||
− | |||
खड़ा हुआ भैरों, किन्तु, | खड़ा हुआ भैरों, किन्तु, | ||
− | |||
हँस पड़ा ख़तरनाक | हँस पड़ा ख़तरनाक | ||
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चांदनी के चेहरे पर | चांदनी के चेहरे पर | ||
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गलियों की भूरी ख़ाक | गलियों की भूरी ख़ाक | ||
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उड़ने लगी धूल और | उड़ने लगी धूल और | ||
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सँवलायी नंगी हुई चाँदनी ! | सँवलायी नंगी हुई चाँदनी ! | ||
− | |||
− | |||
और, उस अँधियाले ताल के उस पार | और, उस अँधियाले ताल के उस पार | ||
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नगर निहारता-सा खड़ा है पहाड़ एक | नगर निहारता-सा खड़ा है पहाड़ एक | ||
− | |||
लोहे की नभ-चुम्भी शिला का चबूतरा | लोहे की नभ-चुम्भी शिला का चबूतरा | ||
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लोहांगी कहाता है | लोहांगी कहाता है | ||
− | |||
कि जिसके भव्य शीर्ष पर | कि जिसके भव्य शीर्ष पर | ||
− | |||
बड़ा भारी खण्डहर | बड़ा भारी खण्डहर | ||
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खण्डहर के ध्वंसों में बुज़ुर्ग दरख़्त एक | खण्डहर के ध्वंसों में बुज़ुर्ग दरख़्त एक | ||
− | |||
जिसके घने तने पर | जिसके घने तने पर | ||
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लिक्खी है प्रेमियों ने | लिक्खी है प्रेमियों ने | ||
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अपनी याददाश्तें, | अपनी याददाश्तें, | ||
− | |||
लोहांगी में हवाएँ | लोहांगी में हवाएँ | ||
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दरख़्त में घुसकर | दरख़्त में घुसकर | ||
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पत्तों से फुसफुसाती कहती हैं | पत्तों से फुसफुसाती कहती हैं | ||
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नगर की व्यथाएँ | नगर की व्यथाएँ | ||
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सभाओं की कथाएँ | सभाओं की कथाएँ | ||
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मोर्चों की तड़प और | मोर्चों की तड़प और | ||
− | |||
मकानों के मोर्चे | मकानों के मोर्चे | ||
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मीटिंगों के मर्म-राग | मीटिंगों के मर्म-राग | ||
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अंगारों से भरी हुई | अंगारों से भरी हुई | ||
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प्राणों की गर्म राख | प्राणों की गर्म राख | ||
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गलियों में बसी हुई छायाओं के लोक में | गलियों में बसी हुई छायाओं के लोक में | ||
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छायाएँ हिलीं कुछ | छायाएँ हिलीं कुछ | ||
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छायाएँ चली दो | छायाएँ चली दो | ||
− | |||
मद्धिम चांदनी में | मद्धिम चांदनी में | ||
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भैरों के सिन्दूरी भयावने मुख पर | भैरों के सिन्दूरी भयावने मुख पर | ||
− | |||
छायीं दो छायाएँ | छायीं दो छायाएँ | ||
− | |||
छरहरी छाइयाँ !! | छरहरी छाइयाँ !! | ||
− | |||
रात्रि की थाहों में लिपटी हुई साँवली तहों में | रात्रि की थाहों में लिपटी हुई साँवली तहों में | ||
− | |||
ज़िन्दगी का प्रश्नमयी थरथर | ज़िन्दगी का प्रश्नमयी थरथर | ||
− | |||
थरथराते बेक़ाबू चांदनी के | थरथराते बेक़ाबू चांदनी के | ||
− | |||
पल्ले-सी उड़ती है गगन-कंगूरों पर । | पल्ले-सी उड़ती है गगन-कंगूरों पर । | ||
− | |||
पीपल के पत्तों के कम्प में | पीपल के पत्तों के कम्प में | ||
− | |||
चांदनी के चमकते कम्प से | चांदनी के चमकते कम्प से | ||
− | |||
ज़िन्दगी की अकुलायी थाहों के अंचल | ज़िन्दगी की अकुलायी थाहों के अंचल | ||
− | |||
उड़ते हैं हवा में !! | उड़ते हैं हवा में !! | ||
− | |||
− | |||
गलियों के आगे बढ़ | गलियों के आगे बढ़ | ||
− | |||
बगल में लिये कुछ | बगल में लिये कुछ | ||
− | |||
मोटे-मोटे कागज़ों की घनी-घनी भोंगली | मोटे-मोटे कागज़ों की घनी-घनी भोंगली | ||
− | |||
लटकाये हाथ में | लटकाये हाथ में | ||
− | |||
डिब्बा एक टीन का | डिब्बा एक टीन का | ||
− | |||
डिब्बे में धरे हुए लम्बी-सी कूँची एक | डिब्बे में धरे हुए लम्बी-सी कूँची एक | ||
− | |||
ज़माना नंगे-पैर | ज़माना नंगे-पैर | ||
− | |||
कहता मैं पेण्टर | कहता मैं पेण्टर | ||
− | |||
शहर है साथ-साथ | शहर है साथ-साथ | ||
− | |||
कहता मैं कारीगर-- | कहता मैं कारीगर-- | ||
− | |||
बरगद की गोल-गोल | बरगद की गोल-गोल | ||
− | |||
हड्डियों की पत्तेदार | हड्डियों की पत्तेदार | ||
− | |||
उलझनों के ढाँचों में | उलझनों के ढाँचों में | ||
− | |||
लटकाओ पोस्टर, | लटकाओ पोस्टर, | ||
− | |||
गलियों के अलमस्त | गलियों के अलमस्त | ||
− | |||
फ़क़ीरों के लहरदार | फ़क़ीरों के लहरदार | ||
− | |||
गीतों से फहराओ | गीतों से फहराओ | ||
− | |||
चिपकाओ पोस्टर | चिपकाओ पोस्टर | ||
− | |||
कहता है कारीगर । | कहता है कारीगर । | ||
− | |||
मज़े में आते हुए | मज़े में आते हुए | ||
− | |||
पेण्टर ने हँसकर कहा-- | पेण्टर ने हँसकर कहा-- | ||
− | |||
पोस्टर लगे हैं, | पोस्टर लगे हैं, | ||
− | |||
कि ठीक जगह | कि ठीक जगह | ||
− | |||
तड़के ही मज़दूर | तड़के ही मज़दूर | ||
− | + | पढ़ेंगे घूर-घूर, | |
− | पढ़ेंगे घूर-घूर, | + | रास्ते में खड़े-खड़े लोग-बाग |
− | रास्ते में खड़े-खड़े लोग-बाग | + | पढ़ेंगे ज़िन्दगी की |
− | पढ़ेंगे ज़िन्दगी की | + | |
− | + | ||
झल्लायी हुई आग ! | झल्लायी हुई आग ! | ||
− | |||
प्यारे भाई कारीगर, | प्यारे भाई कारीगर, | ||
− | |||
अगर खींच सकूँ मैं-- | अगर खींच सकूँ मैं-- | ||
− | |||
हड़ताली पोस्टर पढ़ते हुए | हड़ताली पोस्टर पढ़ते हुए | ||
− | |||
लोगों के रेखा-चित्र, | लोगों के रेखा-चित्र, | ||
− | |||
बड़ा मज़ा आयेगा । | बड़ा मज़ा आयेगा । | ||
− | |||
कत्थई खपरैलों से उठते हुए धुएँ | कत्थई खपरैलों से उठते हुए धुएँ | ||
− | |||
रंगों में | रंगों में | ||
− | |||
आसमानी सियाही मिलायी जाय, | आसमानी सियाही मिलायी जाय, | ||
− | |||
सुबह की किरनों के रंगों में | सुबह की किरनों के रंगों में | ||
− | |||
रात के गृह-दीप-प्रकाश को आशाएँ घोलकर | रात के गृह-दीप-प्रकाश को आशाएँ घोलकर | ||
− | |||
हिम्मतें लायी जायँ, | हिम्मतें लायी जायँ, | ||
− | |||
स्याहियों से आँखें बने | स्याहियों से आँखें बने | ||
− | |||
आँखों की पुतली में धधक की लाल-लाल | आँखों की पुतली में धधक की लाल-लाल | ||
− | |||
पाँख बने, | पाँख बने, | ||
− | |||
एकाग्र ध्यान-भरी | एकाग्र ध्यान-भरी | ||
− | |||
आँखों की किरनें | आँखों की किरनें | ||
− | |||
पोस्टरों पर गिरे--तब | पोस्टरों पर गिरे--तब | ||
− | |||
कहो भाई कैसा हो ? | कहो भाई कैसा हो ? | ||
− | |||
कारीगर ने साथी के कन्धे पर हाथ रख | कारीगर ने साथी के कन्धे पर हाथ रख | ||
− | |||
कहा तब-- | कहा तब-- | ||
− | |||
मेरे भी करतब सुनो तुम, | मेरे भी करतब सुनो तुम, | ||
− | |||
धुएँ से कजलाये | धुएँ से कजलाये | ||
− | |||
कोठे की भीत पर | कोठे की भीत पर | ||
− | |||
बाँस की तीली की लेखनी से लिखी थी | बाँस की तीली की लेखनी से लिखी थी | ||
− | |||
राम-कथा व्यथा की | राम-कथा व्यथा की | ||
− | |||
कि आज भी जो सत्य है | कि आज भी जो सत्य है | ||
− | |||
लेकिन, भाई, कहाँ अब वक़्त है !! | लेकिन, भाई, कहाँ अब वक़्त है !! | ||
− | |||
तसवीरें बनाने की | तसवीरें बनाने की | ||
− | |||
इच्छा अभी बाक़ी है-- | इच्छा अभी बाक़ी है-- | ||
− | |||
ज़िन्दगी भूरी ही नहीं, वह ख़ाकी है । | ज़िन्दगी भूरी ही नहीं, वह ख़ाकी है । | ||
− | |||
ज़माने ने नगर के कन्धे पर हाथ रख | ज़माने ने नगर के कन्धे पर हाथ रख | ||
− | |||
कह दिया साफ़-साफ़ | कह दिया साफ़-साफ़ | ||
− | |||
पैरों के नखों से या डण्डे की नोक से | पैरों के नखों से या डण्डे की नोक से | ||
− | |||
धरती की धूल में भी रेखाएँ खींचकर | धरती की धूल में भी रेखाएँ खींचकर | ||
− | |||
तसवीरें बनाती हैं | तसवीरें बनाती हैं | ||
− | |||
बशर्ते कि ज़िन्दगी के चित्र-सी | बशर्ते कि ज़िन्दगी के चित्र-सी | ||
− | |||
बनाने का चाव हो | बनाने का चाव हो | ||
− | |||
श्रद्धा हो, भाव हो । | श्रद्धा हो, भाव हो । | ||
− | |||
कारीगर ने हँसकर | कारीगर ने हँसकर | ||
− | |||
बगल में खींचकर पेण्टर से कहा, भाई | बगल में खींचकर पेण्टर से कहा, भाई | ||
− | |||
चित्र बनाते वक़्त | चित्र बनाते वक़्त | ||
− | |||
सब स्वार्थ त्यागे जायँ, | सब स्वार्थ त्यागे जायँ, | ||
− | |||
अंधेरे से भरे हुए | अंधेरे से भरे हुए | ||
− | |||
ज़ीने की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती जो | ज़ीने की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती जो | ||
− | |||
अभिलाषा--अन्ध है | अभिलाषा--अन्ध है | ||
− | |||
ऊपर के कमरे सब अपने लिए बन्द हैं | ऊपर के कमरे सब अपने लिए बन्द हैं | ||
− | |||
अपने लिए नहीं वे !! | अपने लिए नहीं वे !! | ||
− | |||
ज़माने ने नगर से यह कहा कि | ज़माने ने नगर से यह कहा कि | ||
− | |||
ग़लत है यह, भ्रम है | ग़लत है यह, भ्रम है | ||
− | |||
हमारा अधिकार सम्मिलित श्रम और | हमारा अधिकार सम्मिलित श्रम और | ||
− | |||
छीनने का दम है । | छीनने का दम है । | ||
− | |||
फ़िलहाल तसवीरें | फ़िलहाल तसवीरें | ||
− | |||
इस समय हम | इस समय हम | ||
− | |||
नहीं बना पायेंगे | नहीं बना पायेंगे | ||
− | |||
अलबत्ता पोस्टर हम लगा जायेंगे । | अलबत्ता पोस्टर हम लगा जायेंगे । | ||
− | |||
हम धधकायेंगे । | हम धधकायेंगे । | ||
− | |||
मानो या मानो मत | मानो या मानो मत | ||
− | |||
आज तो चन्द्र है, सविता है, | आज तो चन्द्र है, सविता है, | ||
− | |||
पोस्टर ही कविता है !! | पोस्टर ही कविता है !! | ||
− | |||
वेदना के रक्त से लिखे गये | वेदना के रक्त से लिखे गये | ||
− | |||
लाल-लाल घनघोर | लाल-लाल घनघोर | ||
− | |||
धधकते पोस्टर | धधकते पोस्टर | ||
− | |||
गलियों के कानों में बोलते हैं | गलियों के कानों में बोलते हैं | ||
− | |||
धड़कती छाती की प्यार-भरी गरमी में | धड़कती छाती की प्यार-भरी गरमी में | ||
− | |||
भाफ-बने आँसू के ख़ूँख़ार अक्षर !! | भाफ-बने आँसू के ख़ूँख़ार अक्षर !! | ||
− | |||
चटाख से लगी हुई | चटाख से लगी हुई | ||
− | |||
रायफ़ली गोली के धड़ाकों से टकरा | रायफ़ली गोली के धड़ाकों से टकरा | ||
− | |||
प्रतिरोधी अक्षर | प्रतिरोधी अक्षर | ||
− | |||
ज़माने के पैग़म्बर | ज़माने के पैग़म्बर | ||
− | |||
टूटता आसमान थामते हैं कन्धों पर | टूटता आसमान थामते हैं कन्धों पर | ||
− | |||
हड़ताली पोस्टर | हड़ताली पोस्टर | ||
− | |||
कहते हैं पोस्टर-- | कहते हैं पोस्टर-- | ||
− | |||
आदमी की दर्द-भरी गहरी पुकार सुन | आदमी की दर्द-भरी गहरी पुकार सुन | ||
− | |||
पड़ता है दौड़ जो | पड़ता है दौड़ जो | ||
− | |||
आदमी है वह ख़ूब | आदमी है वह ख़ूब | ||
− | |||
जैसे तुम भी आदमी | जैसे तुम भी आदमी | ||
− | |||
वैसे मैं भी आदमी, | वैसे मैं भी आदमी, | ||
− | |||
बूढ़ी माँ के झुर्रीदार | बूढ़ी माँ के झुर्रीदार | ||
− | |||
चेहरे पर छाये हुए | चेहरे पर छाये हुए | ||
− | |||
आँखों में डूबे हुए | आँखों में डूबे हुए | ||
− | |||
ज़िन्दगी के तजुर्बात | ज़िन्दगी के तजुर्बात | ||
− | |||
बोलते हैं एक साथ | बोलते हैं एक साथ | ||
− | |||
जैसे तुम भी आदमी | जैसे तुम भी आदमी | ||
− | |||
वैसे मैं भी आदमी, | वैसे मैं भी आदमी, | ||
− | |||
चिल्लाते हैं पोस्टर । | चिल्लाते हैं पोस्टर । | ||
− | |||
धरती का नीला पल्ला काँपता है | धरती का नीला पल्ला काँपता है | ||
− | |||
यानी आसमान काँपता है, | यानी आसमान काँपता है, | ||
− | |||
आदमी के ह्रदय में करुणा कि रिमझिम, | आदमी के ह्रदय में करुणा कि रिमझिम, | ||
− | |||
काली इस झड़ी में | काली इस झड़ी में | ||
− | |||
विचारों की विक्षोभी तडित् कराहती | विचारों की विक्षोभी तडित् कराहती | ||
− | |||
क्रोध की गुहाओं का मुँह खोले | क्रोध की गुहाओं का मुँह खोले | ||
− | |||
शक्ति के पहाड़ दहाड़ते | शक्ति के पहाड़ दहाड़ते | ||
− | |||
काली इस झड़ी में वेदना की तडित् कराहती | काली इस झड़ी में वेदना की तडित् कराहती | ||
− | |||
मदद के लिए अब, | मदद के लिए अब, | ||
− | |||
करुणा के रोंगटों में सन्नाटा | करुणा के रोंगटों में सन्नाटा | ||
− | |||
दौड़ पड़ता आदमी, | दौड़ पड़ता आदमी, | ||
− | |||
व आदमी के दौड़ने के साथ-साथ | व आदमी के दौड़ने के साथ-साथ | ||
− | |||
दौड़ता जहान | दौड़ता जहान | ||
− | |||
और दौड़ पड़ता आसमान !! | और दौड़ पड़ता आसमान !! | ||
− | |||
− | |||
मुहल्ले के मुहाने के उस पार | मुहल्ले के मुहाने के उस पार | ||
− | |||
बहस छिड़ी हुई है, | बहस छिड़ी हुई है, | ||
− | |||
पोस्टर पहने हुए | पोस्टर पहने हुए | ||
− | |||
बरगद की शाखें ढीठ | बरगद की शाखें ढीठ | ||
− | |||
पोस्टर धारण किये | पोस्टर धारण किये | ||
− | |||
भैंरों की कड़ी पीठ | भैंरों की कड़ी पीठ | ||
− | |||
भैंरों और बरगद में बहस खड़ी हुई है | भैंरों और बरगद में बहस खड़ी हुई है | ||
− | |||
ज़ोरदार जिरह कि कितना समय लगेगा | ज़ोरदार जिरह कि कितना समय लगेगा | ||
− | |||
सुबह होगी कब और | सुबह होगी कब और | ||
− | |||
मुश्किल होगी दूर कब | मुश्किल होगी दूर कब | ||
− | |||
समय का कण-कण | समय का कण-कण | ||
− | |||
गगन की कालिमा से | गगन की कालिमा से | ||
− | |||
बूंद-बूंद चू रहा | बूंद-बूंद चू रहा | ||
− | |||
तडित्-उजाला बन !! | तडित्-उजाला बन !! | ||
+ | </poem> |
13:42, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण
नगर के बीचों-बीच
आधी रात--अंधेरे की काली स्याह
शिलाओं से बनी हुई
भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए
ऊँचे-ऊँचे कन्धों पर
चांदनी की फैली हुई सँवलायी झालरें।
कारखाना--अहाते के उस पार
धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे
उद्गार--चिह्नाकार--मीनार
मीनारों के बीचों-बीच
चांद का है टेढ़ा मुँह!!
भयानक स्याह सन तिरपन का चांद वह !!
गगन में करफ़्यू है
धरती पर चुपचाप ज़हरीली छिः थूः है !!
पीपल के खाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के,
पैठे हैं खाली हुए कारतूस ।
गंजे-सिर चांद की सँवलायी किरनों के जासूस
साम-सूम नगर में धीरे-धीरे घूम-घाम
नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे है !!
चांद की कनखियों की कोण-गामी किरनें
पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है
अंधेरे में, पट्टियाँ ।
देखती है नगर की ज़िन्दगी का टूटा-फूटा
उदास प्रसार वह ।
समीप विशालकार
अंधियाले लाल पर
सूनेपन की स्याही में डूबी हुई
चांदनी भी सँवलायी हुई है !!
भीमाकार पुलों के बहुत नीचे, भयभीत
मनुष्य-बस्ती के बियाबान तटों पर
बहते हुए पथरीले नालों की धारा में
धराशायी चांदनी के होंठ काले पड़ गये
हरिजन गलियों में
लटकी है पेड़ पर
कुहासे के भूतों की साँवली चूनरी--
चूनरी में अटकी है कंजी आँख गंजे-सिर
टेढ़े-मुँह चांद की ।
बारह का वक़्त है,
भुसभुसे उजाले का फुसफुसाता षड्यन्त्र
शहर में चारों ओर;
ज़माना भी सख्त है !!
अजी, इस मोड़ पर
बरगद की घनघोर शाखाओं की गठियल
अजगरी मेहराब--
मरे हुए ज़मानों की संगठित छायाओं में
बसी हुई
सड़ी-बुसी बास लिये--
फैली है गली के
मुहाने में चुपचाप ।
लोगों के अरे ! आने-जाने में चुपचाप,
अजगरी कमानी से गिरती है टिप-टिप
फड़फड़ाते पक्षियों की बीट--
मानो समय की बीट हो !!
गगन में कर्फ़्यू है,
वृक्षों में बैठे हुए पक्षियों पर करफ़्यू है,
धरती पर किन्तु अजी ! ज़हरीली छिः थूः है ।
बरगद की डाल एक
मुहाने से आगे फैल
सड़क पर बाहरी
लटकती है इस तरह--
मानो कि आदमी के जनम के पहले से
पृथ्वी की छाती पर
जंगली मैमथ की सूँड़ सूँघ रही हो
हवा के लहरीले सिफ़रों को आज भी
बरगद की घनी-घनी छाँव में
फूटी हुई चूड़ियों की सूनी-सूनी कलाई-सी
सूनी-सूनी गलियों में
ग़रीबों के ठाँव में--
चौराहे पर खड़े हुए
भैरों की सिन्दूरी
गेरुई मूरत के पथरीले व्यंग्य स्मित पर
टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी,
तिलिस्मी चांद की राज़-भरी झाइयाँ !!
तजुर्बों का ताबूत
ज़िन्दा यह बरगद
जानता कि भैरों यह कौन है !!
कि भैरों की चट्टानी पीठ पर
पैरों की मज़बूत
पत्थरी-सिन्दूरी ईट पर
भभकते वर्णों के लटकते पोस्टर
ज्वलन्त अक्षर !!
सामने है अंधियाला ताल और
स्याह उसी ताल पर
सँवलायी चांदनी,
समय का घण्टाघर,
निराकार घण्टाघर,
गगन में चुपचाप अनाकार खड़ा है !!
परन्तु, परन्तु...बतलाते
ज़िन्दगी के काँटे ही
कितनी रात बीत गयी
चप्पलों की छपछप,
गली के मुहाने से अजीब-सी आवाज़,
फुसफुसाते हुए शब्द !
जंगल की डालों से गुज़रती हवाओं की सरसर
गली में ज्यों कह जाय
इशारों के आशय,
हवाओं की लहरों के आकार--
किन्हीं ब्रह्मराक्षसों के निराकार
अनाकार
मानो बहस छेड़ दें
बहस जैसे बढ़ जाय
निर्णय पर चली आय
वैसे शब्द बार-बार
गलियों की आत्मा में
बोलते हैं एकाएक
अंधेरे के पेट में से
ज्वालाओं की आँत बाहर निकल आय
वैसे, अरे, शब्दों की धार एक
बिजली के टॉर्च की रोशनी की मार एक
बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर
फैल गयी अकस्मात्
बरगद के खुरदरे अजगरी तने पर
फैल गये हाथ दो
मानो ह्रदय में छिपी हुई बातों ने सहसा
अंधेरे से बाहर आ भुजाएँ पसारी हों
फैले गये हाथ दो
चिपका गये पोस्टर
बाँके तिरछे वर्ण और
लाल नीले घनघोर
हड़ताली अक्षर
इन्ही हलचलों के ही कारण तो सहसा
बरगद में पले हुए पंखों की डरी हुई
चौंकी हुई अजीब-सी गन्दी फड़फड़
अंधेरे की आत्मा से करते हुए शिकायत
काँव-काँव करते हुए पक्षियों के जमघट
उड़ने लगे अकस्मात्
मानो अंधेरे के
ह्रदय में सन्देही शंकाओं के पक्षाघात !!
मद्धिम चांदनी में एकाएक एकाएक
खपरैलों पर ठहर गयी
बिल्ली एक चुपचाप
रजनी के निजी गुप्तचरों की प्रतिनिधि
पूँछ उठाये वह
जंगली तेज़
आँख
फैलाये
यमदूत-पुत्री-सी
(सभी देह स्याह, पर
पंजे सिर्फ़ श्वेत और
ख़ून टपकाते हुए नाख़ून)
देखती है मार्जार
चिपकाता कौन है
मकानों की पीठ पर
अहातों की भीत पर
बरगद की अजगरी डालों के फन्दों पर
अंधेरे के कन्धों पर
चिपकाता कौन है ?
चिपकाता कौन है
हड़ताली पोस्टर
बड़े-बड़े अक्षर
बाँके-तिरछे वर्ण और
लम्बे-चौड़े घनघोर
लाल-नीले भयंकर
हड़ताली पोस्टर !!
टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी भी ख़ूब है
मकान-मकान घुस लोहे के गज़ों की जाली
के झरोखों को पार कर
लिपे हुए कमरे में
जेल के कपड़े-सी फैली है चांदनी,
दूर-दूर काली-काली
धारियों के बड़े-बड़े चौखट्टों के मोटे-मोटे
कपड़े-सी फैली है
लेटी है जालीदार झरोखे से आयी हुई
जेल सुझाती हुई ऐयारी रोशनी !!
अंधियाले ताल पर
काले घिने पंखों के बार-बार
चक्करों के मंडराते विस्तार
घिना चिमगादड़-दल भटकता है चारों ओर
मानो अहं के अवरुद्ध
अपावन अशुद्ध घेरे में घिरे हुए
नपुंसक पंखों की छटपटाती रफ़्तार
घिना चिमगादड़-दल
भटकता है प्यासा-सा,
बुद्धि की आँखों में
स्वार्थों के शीशे-सा !!
बरगद को किन्तु सब
पता था इतिहास,
कोलतारी सड़क पर खड़े हुए सर्वोच्च
गान्धी के पुतले पर
बैठे हुए आँखों के दो चक्र
यानी कि घुग्घू एक--
तिलक के पुतले पर
बैठे हुए घुग्घू से
बातचीत करते हुए
कहता ही जाता है--
"......मसान में......
मैंने भी सिद्धि की ।
देखो मूठ मार दी
मनुष्यों पर इस तरह......"
तिलक के पुतले पर बैठे हुए घुग्घू ने
देखा कि भयानक लाल मूँठ
काले आसमान में
तैरती-सी धीरे-धीरे जा रही
उद्गार-चिह्नाकार विकराल
तैरता था लाल-लाल !!
देख, उसने कहा कि वाह-वाह
रात के जहाँपनाह
इसीलिए आज-कल
दिल के उजाले में भी अंधेरे की साख है
रात्रि की काँखों में दबी हुई
संस्कृति-पाखी के पंख है सुरक्षित !!
...पी गया आसमान
रात्रि की अंधियाली सच्चाइयाँ घोंट के,
मनुष्यों को मारने के ख़ूब हैं ये टोटके !
गगन में करफ़्यू है,
ज़माने में ज़ोरदार ज़हरीली छिः थूः है !!
सराफ़े में बिजली के बूदम
खम्भों पर लटके हुए मद्धिम
दिमाग़ में धुन्ध है,
चिन्ता है सट्टे की ह्रदय-विनाशिनी !!
रात्रि की काली स्याह
कड़ाही से अकस्मात्
सड़कों पर फैल गयी
सत्यों की मिठाई की चाशनी !!
टेढ़े-मुँह चांद की ऐयारी रोशनी
भीमाकार पुलों के
ठीक नीचे बैठकर,
चोरों-सी उचक्कों-सी
नालों और झरनों के तटों पर
किनारे-किनारे चल,
पानी पर झुके हुए
पेड़ों के नीचे बैठ,
रात-बे-रात वह
मछलियाँ फँसाती है
आवारा मछुओं-सी शोहदों-सी चांदनी
सड़कों के पिछवाड़े
टूटे-फूटे दृश्यों में,
गन्दगी के काले-से नाले के झाग पर
बदमस्त कल्पना-सी फैली थी रात-भर
सेक्स के कष्टों के कवियों के काम-सी !
किंग्सवे में मशहूर
रात की है ज़िन्दगी !
सड़कों की श्रीमान्
भारतीय फिरंगी दुकान,
सुगन्धित प्रकाश में चमचमाता ईमान
रंगीन चमकती चीज़ों के सुरभित
स्पर्शों में
शीशों की सुविशाल झाँइयों के रमणीय
दृश्यों में
बसी थी चांदनी
खूबसूरत अमरीकी मैग्ज़ीन-पृष्ठों-सी
खुली थी,
नंगी-सी नारियों के
उघरे हुए अंगों के
विभिन्न पोज़ों मे
लेटी थी चांदनी
सफे़द
अण्डरवियर-सी, आधुनिक प्रतीकों में
फैली थी
चांदनी !
करफ़्यू नहीं यहाँ, पसन्दगी...सन्दली,
किंग्सवे में मशहूर रात की है ज़िन्दगी
अजी, यह चांदनी भी बड़ी मसखरी है !!
तिमंज़ले की एक
खिड़की में बिल्ली के सफे़द धब्बे-सी
चमकती हुई वह
समेटकर हाथ-पाँव
किसी की ताक में
बैठी हुई चुपचाप
धीरे से उतरती है
रास्तों पर पथों पर;
चढ़ती है छतों पर
गैलरी में घूम और
खपरैलों पर चढ़कर
नीमों की शाखों के सहारे
आंगन में उतरकर
कमरों में हलके-पाँव
देखती है, खोजती है--
शहर के कोनों के तिकोने में छुपी हुई
चांदनी
सड़क के पेड़ों के गुम्बदों पर चढ़कर
महल उलाँघ कर
मुहल्ले पार कर
गलियों की गुहाओं में दबे-पाँव
खुफ़िया सुराग़ में
गुप्तचरी ताक में
जमी हुई खोजती है कौन वह
कन्धों पर अंधेरे के
चिपकाता कौन है
भड़कीले पोस्टर,
लम्बे-चौड़े वर्ण और
बाँके-तिरछे घनघोर
लाल-नीले अक्षर ।
कोलतारी सड़क के बीचों-बीच खड़ी हुई
गान्धी की मूर्ति पर
बैठे हुए घुग्घू ने
गाना शुरु किया,
हिचकी की ताल पर
साँसों ने तब
मर जाना
शुरु किया,
टेलीफ़ून-खम्भों पर थमे हुए तारों ने
सट्टे के ट्रंक-कॉल-सुरों में
थर्राना और झनझनाना शुरु किया !
रात्रि का काला-स्याह
कन-टोप पहने हुए
आसमान-बाबा ने हनुमान-चालीसा
डूबी हुई बानी में गाना शुरु किया ।
मसान के उजाड़
पेड़ों की अंधियाली शाख पर
लाल-लाल लटके हुए
प्रकाश के चीथड़े--
हिलते हुए, डुलते हुए, लपट के पल्लू ।
सचाई के अध-जले मुर्दों की चिताओं की
फटी हुई, फूटी हुई दहक में कवियों ने
बहकती कविताएँ गाना शुरु किया ।
संस्कृति के कुहरीले धुएँ से भूतों के
गोल-गोल मटकों से चेहरों ने
नम्रता के घिघियाते स्वांग में
दुनिया को हाथ जोड़
कहना शुरु किया--
बुद्ध के स्तूप में
मानव के सपने
गड़ गये, गाड़े गये !!
ईसा के पंख सब
झड़ गये, झाड़े गये !!
सत्य की
देवदासी-चोलियाँ उतारी गयी
उघारी गयीं,
सपनों की आँते सब
चीरी गयीं, फाड़ी गयीं !!
बाक़ी सब खोल है,
ज़िन्दगी में झोल है !!
गलियों का सिन्दूरी विकराल
खड़ा हुआ भैरों, किन्तु,
हँस पड़ा ख़तरनाक
चांदनी के चेहरे पर
गलियों की भूरी ख़ाक
उड़ने लगी धूल और
सँवलायी नंगी हुई चाँदनी !
और, उस अँधियाले ताल के उस पार
नगर निहारता-सा खड़ा है पहाड़ एक
लोहे की नभ-चुम्भी शिला का चबूतरा
लोहांगी कहाता है
कि जिसके भव्य शीर्ष पर
बड़ा भारी खण्डहर
खण्डहर के ध्वंसों में बुज़ुर्ग दरख़्त एक
जिसके घने तने पर
लिक्खी है प्रेमियों ने
अपनी याददाश्तें,
लोहांगी में हवाएँ
दरख़्त में घुसकर
पत्तों से फुसफुसाती कहती हैं
नगर की व्यथाएँ
सभाओं की कथाएँ
मोर्चों की तड़प और
मकानों के मोर्चे
मीटिंगों के मर्म-राग
अंगारों से भरी हुई
प्राणों की गर्म राख
गलियों में बसी हुई छायाओं के लोक में
छायाएँ हिलीं कुछ
छायाएँ चली दो
मद्धिम चांदनी में
भैरों के सिन्दूरी भयावने मुख पर
छायीं दो छायाएँ
छरहरी छाइयाँ !!
रात्रि की थाहों में लिपटी हुई साँवली तहों में
ज़िन्दगी का प्रश्नमयी थरथर
थरथराते बेक़ाबू चांदनी के
पल्ले-सी उड़ती है गगन-कंगूरों पर ।
पीपल के पत्तों के कम्प में
चांदनी के चमकते कम्प से
ज़िन्दगी की अकुलायी थाहों के अंचल
उड़ते हैं हवा में !!
गलियों के आगे बढ़
बगल में लिये कुछ
मोटे-मोटे कागज़ों की घनी-घनी भोंगली
लटकाये हाथ में
डिब्बा एक टीन का
डिब्बे में धरे हुए लम्बी-सी कूँची एक
ज़माना नंगे-पैर
कहता मैं पेण्टर
शहर है साथ-साथ
कहता मैं कारीगर--
बरगद की गोल-गोल
हड्डियों की पत्तेदार
उलझनों के ढाँचों में
लटकाओ पोस्टर,
गलियों के अलमस्त
फ़क़ीरों के लहरदार
गीतों से फहराओ
चिपकाओ पोस्टर
कहता है कारीगर ।
मज़े में आते हुए
पेण्टर ने हँसकर कहा--
पोस्टर लगे हैं,
कि ठीक जगह
तड़के ही मज़दूर
पढ़ेंगे घूर-घूर,
रास्ते में खड़े-खड़े लोग-बाग
पढ़ेंगे ज़िन्दगी की
झल्लायी हुई आग !
प्यारे भाई कारीगर,
अगर खींच सकूँ मैं--
हड़ताली पोस्टर पढ़ते हुए
लोगों के रेखा-चित्र,
बड़ा मज़ा आयेगा ।
कत्थई खपरैलों से उठते हुए धुएँ
रंगों में
आसमानी सियाही मिलायी जाय,
सुबह की किरनों के रंगों में
रात के गृह-दीप-प्रकाश को आशाएँ घोलकर
हिम्मतें लायी जायँ,
स्याहियों से आँखें बने
आँखों की पुतली में धधक की लाल-लाल
पाँख बने,
एकाग्र ध्यान-भरी
आँखों की किरनें
पोस्टरों पर गिरे--तब
कहो भाई कैसा हो ?
कारीगर ने साथी के कन्धे पर हाथ रख
कहा तब--
मेरे भी करतब सुनो तुम,
धुएँ से कजलाये
कोठे की भीत पर
बाँस की तीली की लेखनी से लिखी थी
राम-कथा व्यथा की
कि आज भी जो सत्य है
लेकिन, भाई, कहाँ अब वक़्त है !!
तसवीरें बनाने की
इच्छा अभी बाक़ी है--
ज़िन्दगी भूरी ही नहीं, वह ख़ाकी है ।
ज़माने ने नगर के कन्धे पर हाथ रख
कह दिया साफ़-साफ़
पैरों के नखों से या डण्डे की नोक से
धरती की धूल में भी रेखाएँ खींचकर
तसवीरें बनाती हैं
बशर्ते कि ज़िन्दगी के चित्र-सी
बनाने का चाव हो
श्रद्धा हो, भाव हो ।
कारीगर ने हँसकर
बगल में खींचकर पेण्टर से कहा, भाई
चित्र बनाते वक़्त
सब स्वार्थ त्यागे जायँ,
अंधेरे से भरे हुए
ज़ीने की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती जो
अभिलाषा--अन्ध है
ऊपर के कमरे सब अपने लिए बन्द हैं
अपने लिए नहीं वे !!
ज़माने ने नगर से यह कहा कि
ग़लत है यह, भ्रम है
हमारा अधिकार सम्मिलित श्रम और
छीनने का दम है ।
फ़िलहाल तसवीरें
इस समय हम
नहीं बना पायेंगे
अलबत्ता पोस्टर हम लगा जायेंगे ।
हम धधकायेंगे ।
मानो या मानो मत
आज तो चन्द्र है, सविता है,
पोस्टर ही कविता है !!
वेदना के रक्त से लिखे गये
लाल-लाल घनघोर
धधकते पोस्टर
गलियों के कानों में बोलते हैं
धड़कती छाती की प्यार-भरी गरमी में
भाफ-बने आँसू के ख़ूँख़ार अक्षर !!
चटाख से लगी हुई
रायफ़ली गोली के धड़ाकों से टकरा
प्रतिरोधी अक्षर
ज़माने के पैग़म्बर
टूटता आसमान थामते हैं कन्धों पर
हड़ताली पोस्टर
कहते हैं पोस्टर--
आदमी की दर्द-भरी गहरी पुकार सुन
पड़ता है दौड़ जो
आदमी है वह ख़ूब
जैसे तुम भी आदमी
वैसे मैं भी आदमी,
बूढ़ी माँ के झुर्रीदार
चेहरे पर छाये हुए
आँखों में डूबे हुए
ज़िन्दगी के तजुर्बात
बोलते हैं एक साथ
जैसे तुम भी आदमी
वैसे मैं भी आदमी,
चिल्लाते हैं पोस्टर ।
धरती का नीला पल्ला काँपता है
यानी आसमान काँपता है,
आदमी के ह्रदय में करुणा कि रिमझिम,
काली इस झड़ी में
विचारों की विक्षोभी तडित् कराहती
क्रोध की गुहाओं का मुँह खोले
शक्ति के पहाड़ दहाड़ते
काली इस झड़ी में वेदना की तडित् कराहती
मदद के लिए अब,
करुणा के रोंगटों में सन्नाटा
दौड़ पड़ता आदमी,
व आदमी के दौड़ने के साथ-साथ
दौड़ता जहान
और दौड़ पड़ता आसमान !!
मुहल्ले के मुहाने के उस पार
बहस छिड़ी हुई है,
पोस्टर पहने हुए
बरगद की शाखें ढीठ
पोस्टर धारण किये
भैंरों की कड़ी पीठ
भैंरों और बरगद में बहस खड़ी हुई है
ज़ोरदार जिरह कि कितना समय लगेगा
सुबह होगी कब और
मुश्किल होगी दूर कब
समय का कण-कण
गगन की कालिमा से
बूंद-बूंद चू रहा
तडित्-उजाला बन !!