भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते / नित्यानन्द तुषार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते/ नित्यानन्द तुषार का नाम बदलकर हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नित्यानन्द तुषार
 
|रचनाकार=नित्यानन्द तुषार
}}  
+
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते
 
हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते

15:04, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण

हमेशा पास रहते हैं मगर पल-भर नहीं मिलते
बहुत चाहो जिन्हें दिल से वही अक्सर नहीं मिलते

ज़रा ये तो बताओ तुम हुनर कैसे दिखाएँ वो
यहाँ जिन बुत-तरासों को सही पत्थर नहीं मिलते

हमें ऐसा नहीं लगता यहाँ पर वार भी होगा
यहाँ के लोग हमसे तो कभी हँसकर नहीं मिलते

हमारी भी तमन्ना थी उड़ें आकाश में लेकिन
विवश होकर यही सोचा सभी को पर नहीं मिलते

ग़ज़ब का खौफ छाया है हुआ क्या हादसा यारो
घरों से आजकल बच्चे हमें बाहर नहीं मिलते

हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी
जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते