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"निवेदन / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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23:22, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण

सुप्त उर के तार फिर से
प्राण ! आकर झनझना दो !

नभ-अवनि में शुभ्र फैली चांदनी,
मूक है खोयी हुई-सी यामिनी ;
और कितनी तुम मनोहर कामिनी !

आज तो बन्दी बनाकर
क्षणिक उन्मादी बनादो !

मद भरे अरुणाभ हैं सुन्दर अधर,
नैन हिरनी से कहीं निश्छल सरल,
देह ‘विद्युत, काँच, जल-सी’ श्वेत है,
डालियों-सी बाहु मांसल तव नवल,

आज जीवन से भरा नव
गीत मीठा गुनगुना दो !

स्वर्ग से सुन्दर कहीं संसार है,
हर दिशा से हो रही झंकार है,
विश्व को यह प्रेम री स्वीकार है,

चिर-प्रतीक्षित-मधु-मिलन
त्योहार संगिनि ! अब मना लो !