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"असह / विहान / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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23:45, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
अब न रहा जाता!
प्रिय दूभर जीना;
मूक हृदय-वीणा,
आघात समय का
अब न सहा जाता!
करुण कथा कितनी,
गरल व्यथा कितनी,
लय में छंदों में
अब न कहा जाता!
जीवित नेह कहाँ?
सुन्दर गेह कहाँ?
मन दुख-सरिता में
अब न नहा पाता!
हैं मौन सुखद स्वर,
जीवन शांत लहर,
बीहड़ पथ से रे
अब न बहा जाता!
रचनाकाल: 1945