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"अपेक्षा / राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | हमदर्द हो | + | सर्वत्र छाये शोक में |
− | कोई | + | हमदर्द हो |
− | कभी तो! | + | कोई |
− | तीव्र विद्युन्मय | + | कभी तो! |
− | दमित वातावरण में | + | तीव्र विद्युन्मय |
− | बेतहाशा गूँजती जब | + | दमित वातावरण में |
− | मर्मवेधी | + | बेतहाशा गूँजती जब |
− | चीख-आह-कराह, | + | मर्मवेधी |
− | अतिदाह में जलती | + | चीख-आह-कराह, |
− | विधवंसित ज़िन्दगी | + | अतिदाह में जलती |
− | आबद्व कारागाह! | + | विधवंसित ज़िन्दगी |
− | ऐसे तबाही के क्षणों में | + | आबद्व कारागाह! |
− | चाह जगती है कि | + | ऐसे तबाही के क्षणों में |
− | कोई तो हमें चाहे | + | चाह जगती है कि |
− | भले, | + | कोई तो हमें चाहे |
+ | भले, | ||
गाहे-ब-गाहे! | गाहे-ब-गाहे! | ||
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15:15, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
कोई तो हमें चाहे
गाहे-ब-गाहे!
निपट सूनी
अकेली ज़िन्दगी में,
गहरे कूप में बरबस
ढकेली ज़िन्दगी में,
निष्ठुर घात-वार-प्रहार
झेली ज़िन्दगी में,
कोई तो हमें चाहे,
सराहे!
किसी की तो मिले
शुभकामना
सद्भावना!
अभिशाप झुलसे लोक में
सर्वत्र छाये शोक में
हमदर्द हो
कोई
कभी तो!
तीव्र विद्युन्मय
दमित वातावरण में
बेतहाशा गूँजती जब
मर्मवेधी
चीख-आह-कराह,
अतिदाह में जलती
विधवंसित ज़िन्दगी
आबद्व कारागाह!
ऐसे तबाही के क्षणों में
चाह जगती है कि
कोई तो हमें चाहे
भले,
गाहे-ब-गाहे!