भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"त्रासदी / आहत युग / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }}दहश...) |
छो (त्रासदी / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर त्रासदी / आहत युग/ महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:31, 1 जनवरी 2010 का अवतरण
दहशत : सन्नाटादूर-दूर तक सन्नाटा !
सहमे-सहमे कुत्ते
सहमे-सहमे पक्षी
चुप हैं।
लगता है-
क्रूर दरिन्दों ने
निर्दोष मनुष्यों को फिर मारा है,
निर्ममता से मारा है !
रातों-रात
मौत के घाट उतारा है !
सन्नाटे को गहराता
गूँजा फिर मज़हब का नारा है !
ख़तरा,
बेहद ख़तरा है !
रात गुज़रते ही
घबराए कुत्ते रोएंगे,
भय-विह्वल पक्षी चीखेंगे !
हम
आहत युग की पीड़ा सह कर
इतिहासों का मलबा ढोएंगे !