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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर
}}{{KKCatKavita}}<poem>दहशत : सन्नाटा <br> दूर-दूर तक सन्नाटा ! <br><br>
सहमे-सहमे कुत्ते <br> सहमे-सहमे पक्षी <br> चुप हैं। <br><br>
लगता है- <br> क्रूर दरिन्दों ने <br> निर्दोष मनुष्यों को फिर मारा है, <br> निर्ममता से मारा है ! <br><br> रातों-रात <br> मौत के घाट उतारा है ! <br> सन्नाटे को गहराता <br> गूँजा फिर मज़हब का नारा है ! <br> ख़तरा, <br> बेहद ख़तरा है ! <br><br>
रात गुज़रते ही <br> घबराए कुत्ते रोएंगे, <br> भय-विह्वल पक्षी चीखेंगे ! <br><br>
हम <br> आहत युग की पीड़ा सह कर <br> इतिहासों का मलबा ढोएंगे ! <br><br/poem>
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