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"कचनार / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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जामुन रंग नहाया<br>
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मेरे गैरिक मन पर छाया<br>
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जम कर बैठ गया कचनार !<br><br>
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कुछ ऐसा झूमा कचनार<br>
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जैसे उमड़ा प्यार !<br>
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ऐसा अद्भुत उपहार !<br><br>
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ऐसा अद्भुत उपहार!
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15:37, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

पहली बार
मेरे द्वार
रह-रह
गह-गह
कुछ ऐसा फूला कचनार
गदराई हर डार!

इतना लहका
इतना दहका
अन्तर की गहराई तक
पैठ गया कचनार!

जामुन रंग नहाया
मेरे गैरिक मन पर छाया
छज्जों और मुँडेरों पर
जम कर बैठ गया कचनार!

पहली बार
मेरे द्वार
कुछ ऐसा झूमा कचनार
रोम-रोम से
जैसे उमड़ा प्यार!
अनगिन इच्छाओं का संसार!
पहली बार
ऐसा अद्भुत उपहार!