"बर्फ़ / चार दृष्य / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
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बड़े वर के सफेद लट्ठे के थान-सी | बड़े वर के सफेद लट्ठे के थान-सी | ||
अछोर फैली यह उजली बर्फ़ | अछोर फैली यह उजली बर्फ़ | ||
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न समझ बजाज | न समझ बजाज | ||
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निपट-लिपट कर | निपट-लिपट कर | ||
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आगामी धूप के पर्व में | आगामी धूप के पर्व में | ||
शामिल होने के लिए | शामिल होने के लिए |
22:28, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
एक
किसी दुर्दिन में
रूईं के फाहों सी
लगातार गिरती बर्फ़
यूँ लगती है
जैसे
अनन्त खरगोश-शावकों को
मार-मार कर
अविरल गिराता जा रहा हो
कोई आकाश मैं बैठा हुआ
पंचतंत्र का सिंह
दो
बड़े वर के सफेद लट्ठे के थान-सी
अछोर फैली यह उजली बर्फ़
कुछ स्थानों पर से
उड़ती हुई यूँ लग रही है
जैसे किसी थान को
बीच-बीच से काट कर
बेच रहा हो कोई
न समझ बजाज
तीन
किसी की खुशी में
कोई विरला ही
झूम उठता है
मस्ती से
देखो हवाएं किस तरह
इस शरदोत्सव में धूप की तरह पीकर
धुत्त
नाच रही हैं
देवदारुओं से
निपट-लिपट कर
चार
आगामी धूप के पर्व में
शामिल होने के लिए
सगर्व
सिर पर अपनी-अपनी
पगड़ी बाँध
सहर्ष
ग्रामीणों की तरह
किस तरह इधर-उधर
सुखा रहे हैं ये कैल,देवदारु
अपने-अपने
बर्फ़ के तहमद