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"माँ रो रही है शान्तनु! / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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माँ रो रही है शान्तनु!
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हमारी ही बोली होंठों पर आकर
 
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न जाने क्यों सूख जाती है शान्तनु !
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न जाने क्यों सूख जाती है शान्तनु!
 
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23:24, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

माँ रो रही है शान्तनु!
वह मानती ही नहीं कि तुम नहीं हो
उसे हम दिलासा नहीं दे पा रहे
तुम्हारा काम हम में से किसी को नहीं आता

कैसे समझें और समझाएँ उसे
कि अब कुछ नहीं होगा रोने से
आँसुओं के पानी में बही चली जा रही
हमारी ही बोली होंठों पर आकर
न जाने क्यों सूख जाती है शान्तनु!