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"यह वक़्त / समरकंद में बाबर / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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कुछ भी
 
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ऎतबार के काबिल नहीं रहा
 
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न कहा गया,
 
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न सुना गया,
 
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और न लिखा गया
 
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कुछ भी नहीं
 
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जहाँ भरोसा कोहनी टिका सके,
 
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कोई कोना नहीं,
 
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जहाँ यकीन बैठ सके,
 
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आलथी-पालथी मारकर
 
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आसेतु हिमाचल
 
आसेतु हिमाचल
 
 
गड्ड्मड्ड हैं आँसू, क्रोध और हताशा
 
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सब कुछ डूबा जा रहा है इस दुर्निवार समय में
 
सब कुछ डूबा जा रहा है इस दुर्निवार समय में
 
  
 
एक तिनके की तलाश में
 
एक तिनके की तलाश में
 
 
लगातार हिचकोले खा रहे हैं
 
लगातार हिचकोले खा रहे हैं
 
 
पचासी करोड़ लोग।
 
पचासी करोड़ लोग।
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13:12, 2 जनवरी 2010 का अवतरण

कुछ भी
ऎतबार के काबिल नहीं रहा
न कहा गया,
न सुना गया,
और न लिखा गया

कुछ भी नहीं
जहाँ भरोसा कोहनी टिका सके,
कोई कोना नहीं,
जहाँ यकीन बैठ सके,
आलथी-पालथी मारकर

आसेतु हिमाचल
गड्ड्मड्ड हैं आँसू, क्रोध और हताशा
सब कुछ डूबा जा रहा है इस दुर्निवार समय में

एक तिनके की तलाश में
लगातार हिचकोले खा रहे हैं
पचासी करोड़ लोग।