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"रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख / कालीदास" के अवतरणों में अंतर

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रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख,
तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै ।
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तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै।
करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार ,
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करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार,
कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै ।
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कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै।
कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान ,
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कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान,
नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै ।
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नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै।
एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ ,
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एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ,
बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै ।
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बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै।
 
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'''  कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
 
'''  कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
 
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13:22, 2 जनवरी 2010 का अवतरण

रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख,
तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै।
करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार,
कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै।
कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान,
नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै।
एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ,
बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै।

कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।